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कुछ अनसुलझा सा

न जाने कितने रहस्य हैं ब्रह्मांड में?
और
और न जाने
कितने रहस्य हैं मेरे भीतर??
क्या कोई जान पाया
या 
कोई जान पायेगा????
नहीं .....!!
क्योंकि  कुछ पहेलियां अनसुलझी रहती हैं
कुछ चौखटें कभी नहीं लांघी जाती
कुछ दरवाजे कभी नहीं खुलते
कुछ तो भीतर हमेशा दरका सा रहता है-
जिसकी मरम्मत नहीं होती,
कुछ खिड़कियों से कभी 
कोई सूरज नहीं झांकता,
कुछ सीलन हमेशा सूखने के इंतजार में रहती है,
कुछ दर्द ताउम्र रिसते रहते हैं,
कुछ भय हमेशा भयभीत किये रहते हैं,
कुछ घाव नासूर बनने को आतुर रहते हैं, 
एक ब्लैकहोल, सबको धीरे धीरे
निगलता रहता है
शायद हम सबके भीतर एक ब्रह्मांड है
जिसे कभी 
कोई नहीं जान पायेगा
लेकिन सुनो,
इसी ब्रह्मांड में एक दूधिया आकाशगंगा सैर करती है
जो शायद तुम्हारे मन के ब्रह्मांड में भी है
#आत्ममुग्धा

टिप्पणियाँ

हर एक के मन के कोने में कुछ दरका रहता है । मन के अंदर कोई नहीं देख पाता यहाँ तक कि हम स्वयं भी कितना जान पाते हैं अपने बारे में । गहन अभव्यक्ति ।
आत्ममुग्धा ने कहा…
सच है कि कई बार हम खुद भी नहीं जान पाते....शुक्रिया आपका
आत्ममुग्धा ने कहा…
शुक्रिया सखी ♥️
Vocal Baba ने कहा…
'शायद हमारे अंदर एक ब्रह्मांड है जिसे कोई नहीं जान पाएगा।' बहुत खूब।
सही है , मानव जीवन ब्रह्मांड की तरह ही रहस्य मयी है । उम्दा प्रस्तुति आदरणीय ।
Alaknanda Singh ने कहा…
वाह आत्‍ममुग्‍धा जी, ब्‍लैकहोल से लेकर ब्रह्मांड तक पहुंचाती ...एक सार्थ वितान रचती कविता...वाह
आपकी लिखी रचना सोमवार 08 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप
Anita ने कहा…
वाह! रहस्यों से ही जीवन के प्रति आकर्षण बना रहता है
आत्ममुग्धा ने कहा…
बहुत शुक्रिया
मन की वीणा ने कहा…
गहन चिंतन प्रभावी रचना।
Sweta sinha ने कहा…
मन की रहस्यमयी परतों में बंद
पहेलियों के अनसुलझे धागे
मानिक,मूँगा, सीपी भावों के चंद
या सिर्फ़ रेत जीवन यही प्रश्न दागे।
-----/----
गहन भाव उकेरे आपने मुदिता जी।
सादर।
सुन्दर रचना, गहन अर्थ समेटे
सादर
Bharti Das ने कहा…
बहुत खूबसूरत रचना
Sudha Devrani ने कहा…
गहन अर्थ समेटे बहुत ही सुन्दर रचना।
रेणु ने कहा…
सबके भीतर एक विहंगम संसार छुपा है।पर व्यक्ति को स्वयं के रहस्य से परिचित होने का ही वरदान प्राप्त है।दूसरों के प्रति उसकी जिज्ञासा सदैव बनी रहती है।एक भावपूर्ण रचना जो हरेक मन की व्यथा कहती है।
रंजू भाटिया ने कहा…
बेहतरीन रचना

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