न जाने कितने रहस्य हैं ब्रह्मांड में?
और
और न जाने
कितने रहस्य हैं मेरे भीतर??
क्या कोई जान पाया
या
कोई जान पायेगा????
नहीं .....!!
क्योंकि कुछ पहेलियां अनसुलझी रहती हैं
कुछ चौखटें कभी नहीं लांघी जाती
कुछ दरवाजे कभी नहीं खुलते
कुछ तो भीतर हमेशा दरका सा रहता है-
जिसकी मरम्मत नहीं होती,
कुछ खिड़कियों से कभी
कोई सूरज नहीं झांकता,
कुछ सीलन हमेशा सूखने के इंतजार में रहती है,
कुछ दर्द ताउम्र रिसते रहते हैं,
कुछ भय हमेशा भयभीत किये रहते हैं,
कुछ घाव नासूर बनने को आतुर रहते हैं,
एक ब्लैकहोल, सबको धीरे धीरे
निगलता रहता है
शायद हम सबके भीतर एक ब्रह्मांड है
जिसे कभी
कोई नहीं जान पायेगा
लेकिन सुनो,
इसी ब्रह्मांड में एक दूधिया आकाशगंगा सैर करती है
जो शायद तुम्हारे मन के ब्रह्मांड में भी है
#आत्ममुग्धा
टिप्पणियाँ
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आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
पहेलियों के अनसुलझे धागे
मानिक,मूँगा, सीपी भावों के चंद
या सिर्फ़ रेत जीवन यही प्रश्न दागे।
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गहन भाव उकेरे आपने मुदिता जी।
सादर।
सादर