सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पहाड़

जब जब पहाड़ों को देखती हूँ
उनकी विशालता
उनके वजूद के आगे
खुद को बौना महसूस करती हूँ
अपना कद पहचानने लगती हूँ
गुरूर को मिटते देखती हूँ
अक्सर मैं पहाड़ों से बतियाती हूँ
वो खड़े रहते है स्थितप्रज्ञ की तरह
सीना ताने
ऊँचाई की ओर प्रखर
मौसम की हर मार सहते
न जाने कब से
किसके इंतजार में 
आसमान तकते
न जाने क्या क्या मुझे सीखा देते
इनकी ऊँचाई मुझे लालायित करती
एक दिन 
एक ऊँचा सा पहाड़ मुझसे बोला
ऊँचाई देखती हो मेरी
कभी देखा है 
जमीं में मैं कितना धँसा हुआ
शायद इस ऊँचाई से भी अधिक 
मैं स्तब्ध थी
उस पहाड़ की प्रखरता, उसकी ऊँचाई
कही अधिक ऊँची थी अब
और मेरा बौनापन
कही अधिक बौना

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 10 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत ही शोधित सत्य - ऊँचाई लिये व्यक्तित्व गहरे होते हैं। आभार आपका।
उस पहाड़ की प्रखरता, उसकी ऊँचाई
कही अधिक ऊँची थी अब
और मेरा बौनापन
कही अधिक बौना
–इस अनुभूति पर तो आपका कद बढ़ गया
उम्दा भावाभिव्यक्ति

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

साड़ी

आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।             जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है।    हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है।     साड़ियां माँ