मैं 'मैं' होना चाहती हूँ
दूर कही जाकर
खूद में रमना चाहती हूँ
घने जंगल में जाकर
पत्तों की सरसराहट....और
झींगुर को सुनना चाहती हूँ
समंदर के अकेलेपन और खारेपन को
महसूसना चाहती हूँ
टूटते तारे को देख
बहुत मांगी मन्नत
अब उसे टूटने से बचाना चाहती हूँ
उस राह पर दौड़ना चाहती हूँ
जिसकी कोई मंजिल नहीं
उस सफर को जीना चाहती हूँ
जिसका कोई मुकाम नहीं
रिश्तें नाते और संबोधनों से दूर
एक जिंदगी चाहती हूँ
हाँ......कुछ वक्त के लिये
मैं सिर्फ़ 'मैं' होना चाहती हूँ
टिप्पणियाँ
मैं " मैं " होना चाहती हूं।
अभिनव सृजन।