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मैं होना चाहती हूँ

मैं 'मैं' होना चाहती हूँ
दूर कही जाकर 
खूद में रमना चाहती हूँ
घने जंगल में जाकर
पत्तों की सरसराहट....और
झींगुर को सुनना चाहती हूँ
समंदर के अकेलेपन और खारेपन को
महसूसना चाहती हूँ
टूटते तारे को देख
बहुत मांगी मन्नत
अब उसे टूटने से बचाना चाहती हूँ
उस राह पर दौड़ना चाहती हूँ
जिसकी कोई मंजिल नहीं
उस सफर को जीना चाहती हूँ
जिसका कोई मुकाम नहीं
रिश्तें नाते और संबोधनों से दूर
एक जिंदगी चाहती हूँ
हाँ......कुछ वक्त के लिये
मैं सिर्फ़ 'मैं' होना चाहती हूँ 

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 13 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Onkar ने कहा…
बहुत सुन्दर
मन की वीणा ने कहा…
वाह बहुत खूब।
मैं " मैं " होना चाहती हूं।
अभिनव सृजन।
शुभा ने कहा…
वाह!!बेहतरीन👌
आत्ममुग्धा ने कहा…
दी , धन्यवाद आपका और न आ पाने के लिये क्षमाप्रार्थी ,
आत्ममुग्धा ने कहा…
आभार सखी.....आत्ममुग्धा जो हूँ 😁

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