उसे हिंदी की गहन समझ नहीं
मुझे अंग्रेजी का ज्ञान नहीं
फासला उम्र का भी भरपूर
दोनो ही मगरुर
वो आजाद ख़्याल....बेबाक बिंदास
वो लिसनर बेहतरीन
वो पूरी मुम्बईया
न जाने कैसे मुझसे जुड़ी
कौनसे तार कहाँ टकराये
मुझमे न जाने क्या वो पाये
संताप अपना झर दिया
मेरे लिखे से खूद को जोड़ लिया
कुछ शब्दों पर शायद वो अटकती
फिर भी हर भाव वो समझती
उसकी आँखे सब बयां करती
चुपचाप वो कुछ मोती छलकाती
बिना सिसकियों दर्द वो बहाती
वो खुशमिजाज सी लड़की
बिना गला भर्राए
आँखों से सब कह जाती
मेरे हर लिखे पर
उसकी झड़ी
न जाने मुझे कहाँ ले गयी
जिस भाव में जो जो लिखा
वो हुबहू उसकी आत्मा तक पहूँचा
चमकीली आँखों वाली वो लड़की
भीगी पलकें दिखा गयी
रोका नहीं कोरों के पानी को उसने
मुस्कुराते हुए बेबाक छलका गयी
वो प्यारी सी लड़की
मोतियों से मुझे सराबोर कर गयी
पहली मुलाकात में मालामाल कर गयी
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