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कैंसर

सुना है 
आज कैंसर दिवस है
हर दिन को मनाने लगे है हम
लोगो को जागरूक करने के लिये...मे बी !
यह ठीक है, लेकिन तभी तक
जब तक आप इससे रुबरु न हुए हो
मुझे तो यह शब्द 
पिछले पाँच छ: सालों से डराता आ रहा है
मैं जानती हूँ इसे
मिली हूँ इससे 
अपनी माँ के दिमाग से होकर
गुगल पर बहुत खंगाला था तब
लेकिन
अब निडरता से समझती हूँ
क्योकि 
जानती हूँ
जो जितना डरता है
उसको उतना डराया जाता है
आखिर ये कैंसर है क्या ?
ये हमारी कोशिकाओं का विभाजन मात्र है
इसी विभाजन से जीव का विकास होता है 
लेकिन
 यही विभाजन जब अति पार कर जाता है
अनियंत्रित होकर विनाश को आता है
तब तब कैंसर जन्म लेता है
जब हम डर जाते है
तो यह ठठाकर अपना विस्तार करता है
हाहाकार करता है
लेकिन 
जब हम इसका सामना करते है 
तो यह विस्तृत होने में सकुचाता है
सुनो
यह डरता है तुमसे
इसे धमकाओ 
गुर्रा कर शेर बन जाओ
ये तुम्हे खत्म करे 
इसके पहले तुम इसे ध्वंस करो
बस, लड़ते रहना.....क्योकि 
इसकी उत्पत्ति ही विभाजन से हुई है
ये सबसे पहले 
तुम्हारे मनोबल को विभक्त करेगा
ये सिर्फ तोड़ना जानता है
पर तुम टुटना मत
जुड़े रहना मजबूती से
फिर देखना....ये स्वयं टूट जायेगा 

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