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कैंसर

सिर्फ पंद्रह दिनों का सिर दर्द
हाँ.....सिर्फ पंद्रह दिनों का
याद है मुझे आज भी
जिसका कभी सर न दुखा
उसे अचानक लागातार 
कैसे ? 
दर्द भी तो साधारण ही था
कोई अवेयर हो भी तो कैसे ?
पर मेरे पापा ! 
अवेयर थे 
जबकि माँ बिल्कुल नहीं
सीटी स्केन हुआ
रिपोर्ट आयी
न जाने कैसे एक गाँठ आयी
गाँठ हमेशा पीड़ा ही देती है
मन में हो
शरीर में हो
या फिर
धागों में हो
लेकिन मन कहता है
हल्दी की गाँठ तो शुभ शगुन होती है ना
फिर वो रिपोर्ट वाली गाँठ 
इतनी चिंताजनक क्यो ? 
आनन फानन ये दौड़भाग क्यो?
हर दूसरा दिन 
पहले से बदतर क्यो?
बताया गया कि 
यह गाँठ बहुत रेयर है
हर किसी को नहीं होती
मन आज भी असमंजस में है
इस गाँठ ने मेरी माँ का चयन क्यो किया?
यह आशीर्वचन की तरह बढ़ती है
दिन दूनी रात चौगूनी
ये कर रही थी....
धीरे धीरे माँ के दिमाग पर कब्जा
जरुरत थी उसे हटाने की
इसके तंतू बहुत सुक्ष्म थे
इतने सुक्ष्म कि
पूरी तरह नहीं हट पाये
उन्हे हटाते हुए 
कुछ आवश्यक तंत्रिकाओं से छेड़छाड़ हुई
बेवजह के कुछ प्रहार से वो क्रुद्ध हुई
मस्तिष्क ने एक फरमान सुनाया
संवेदनाओं का बवाल बनाया
शरीर के एक हिस्से को 
अपना ग्रास बनाया
मृतप्रायः सा उसे बनाया
याद है आज भी
आई सी यू का वो कमरा
एक लाचार हाथ....जो बेबस था
एक वाचाल हाथ....
जिसे बांध दिया था बिस्तर से
बाकी सब भी असहनीय था....जो
कोरो के पानी के साथ बहा नहीं
दर्ज होता गया इतिहास की तरह 
गाँठ हटाई गयी थी
पर उसकी जड़ बाकी थी
तेजी से बढ़ना उसकी फितरत थी
कुछ दिन
कुछ महीनों की संभावना बतायी गयी
जो बीत गयी.....
और आया वो दिन
मेरे हाथ में माँ का ठंडा हाथ था
कैंसर के आगे बेबस इंसान था 

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