नफ़रत से भरे
तुम्हारे कड़वे शब्दों
को कुरेद कर
स्नेह से सींच
अमृत समझ
धारण कर लिया
सदा सदा के लिये
उगलो तो ज़हर
निगलो तो ज़हर
इसलिये सजा लिया
बिल्कुल नीलकंठ की तरह
अपने कंठ में
अब ये नीली सी आभा
मेरे कंठ की
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
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