मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है
वो उंमुक्तता से झुमता है
बशर्ते कि
उसे संयमित अनुपात में
वो सब मिले
जो जरुरी है
उसके विकास के लिये
जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है
उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना
मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है
जो बिल्कुल मन जैसा है
मुट्ठी भर मिट्टी में भी
खुद को सशक्त रखता है
उसकी जड़े फैली नहीं है
नाजुक होते हुए भी मजबूत है
उसके आस पास खुशियों के
दो चार अंकुरण और भी है
ये मन का पौधा है
इसके फैलाव
इसकी जड़ों से इसे मत आंको
क्योकि मैंने देखा है
बरगदों को धराशायी होते हुए
जड़ों से उखड़ते हुए
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 18 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसच कहा, सब समुचित मिले तो व्यक्तित्व का विकास होता है।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर सृजन!
जवाब देंहटाएंजी , सुंदर रचना ।
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