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बस दो हफ्ते

महामारी के मायने हम सभी समझते है तथाकथित समझदार लोग जो है हम। पिछले कुछ दिनों से स्कुल ,कॉलेज, मॉल, थियेटर सब बंद है । इस बंद के क्या मायने है....यही कि हम लोग एक साथ एक जगह भीड़ के रुप में इकठ्ठा न हो, फिर भी हममे से ही कुछ लोग इकठ्ठे हो रहे है। कभी थोड़ी देर टहलने के बहाने, वर्कआउट के बहाने, राशन लाने के बहाने। बड़े बजूर्गों का घर में दम घूट रहा है । बाहर हैंगआउट कर चिल्ल करने वाली नयी पीढ़ी हाथ में सैनिटाईजर लगा कर इसे हल्के में ले रही है । 
     हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी ने जनता कर्फ्यू का आवहान किया जिसे शत प्रतिशत सफलता मिल रही है और लोग पूरे मनोयोग से साथ दे रहे है और इंतजार कर रहे है पाँच बजे का ।
निसंदेह मैं भी कर रही हूँ.....मैंने जब विडियों में इटलीवासीयों का यह जज्बा देखा तो उस वक्त भी विभोरता में मेरी आँखे नम पड़ गयी थी। आज शाम जब हम उन विभोर क्षणों को साथ मिलकर जीयेंगे तो वो अलग ही आनंददायक अनुभूति होगी। एक सकारात्मकता पूरे ब्रह्मांड में छा जायेगी । इस सकारात्मकता को हमे कम से कम दो हफ्तों तक बनाये रखना है । हमे उत्सव नहीं मनाना है....ना ही हमे जंग जीतने वाली फीलिंग की जरुरत है....हमे जरुरत है हमारे संयम, सावधानी और सतर्कता की । हम सब जानते है कि सिर्फ करतल ध्वनि से आकाश गुंजायमान कर हम ये लड़ाई नहीं जीत सकते, बल्कि ये करतल ध्वनि तो शंखनाद है, बिगुल है उस लड़ाई का ...जो हमे अगले दो हफ्तों तक लड़नी है, इसलिए सिर्फ ताली बजाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मत कीजिये.....ये जीत नहीं है ,ये शुरुआत है। विभोरता में आकर इसे जीत न मान ले । हमारे देश का नेतृत्व सबसे सुयोग्य हाथों में है, प्रशासन जितना कर सकता है उससे कही अधिक कर रहा है....इसलिये अनुरोध है अब सतर्क नहीं, थोड़े सख्त भी बन जाईये । दुसरे लोग न सुने पर अपने परिवार को अपनी बात मानने पर मजबूर करे, प्यार से समझाये न समझे तो सख्त बने। सिर्फ दो हफ्तों की बात है....इन दो हफ्तों में दुनिया इधर की उधर न होगी पर हम भीड़ न बने तो कोरोना से लड़ने में सफल जरुर हो जायेंगे।
      मुम्बई की लाईफ लाईन कही जाने वाली लोकल ट्रेन भी बंद है....यह वाकई ऐतिहासिक है क्योकि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। जो बसें, ट्रेन कभी ढ़ंग से साफ नहीं हुई होंगी आज उन्हे पूरा सैनिटाईज किया जा रहा है । क्या आपको नहीं लगता ये सब युद्ध स्तर की तैयारियां है ....हाथ जोड़ गुजारिश है इन सब को व्यर्थ न जाने दे। 
      कोरोना के क्या आंकड़े है और चीन इटली की क्या हालत है ये हम सब को पता है....निसंदेह ये डराने वाली बात है...पर अगर खौफ खाकर भी हम अंदर बने रहते है तो हम समझदार है। कृपया इस महामारी की भयावहता को समझे। चलो मान लिया इम्युनिटी आपकी अच्छी है आपको कुछ नहीं होगा, पर बाहर निकलकर हम कोरोना के कैरियर बन सकते है, ये हमे तकलीफ नहीं देगा पर हम इसको फैलाने में सहायक हो जायेंगे। हमे सिर्फ हमारे परिवार के साथ हमारे घरों में बैठना है, वो भी दो हफ्ते ...बस। उसके बाद स्थिति नियंत्रण में आ जायेगी। आप स्वछंद घूम सकेंगे। आप सोचिये उन माता पिता के बारें में जिनके बच्चें महामारी त्रस्त देशों में नौकरी कर रहे है या अपने परिवार के साथ वहाँ है या जिनके बच्चे वहाँ पढ़ रहे है । उनकी मनोदशा कैसी होगी ? न जाने कब से कितने दिनों से वो लोग अपने घरों में बंद है अपने परिवार से कोसो दूर । हम अपने देश में है ...पर्याप्त खाना पीना हमारे पास है, बस...दो हफ्ते खूद से, अपने परिवार से जुड़ जाईये । 
बिल गैट्स को जानते है ना आप सब , वो साल में दो बार एक एक हफ्ते जंगल में एक छोटे से कोटेज में गुजार कर आते थे और वे उसे 'थिंक वीक' बोलते थे तो बस कुछ इसी स्टाईल से आप भी अपने दो हफ्तों को कुछ नया सा नाम दे सकते है, क्योकि बिल गेट्स से व्यस्त व्यक्तित्व तो आप हो नहीं सकते तो चिल्ल करके घर पर बैठे ।  
     हमारे तो भगवान जगन्नाथ भी 15 दिन का एकांत वास लेते है साल में एक बार । मान्यता है कि वो बीमार होते है और ठीक होने की इस अवधि तक मंदिर बंद रहता है....कहानी बहुत वायरल हो रखी है, शायद आप सबने पढ़ी भी होगी। इसे बताने का औचित्य सिर्फ यही है कि प्रयास, सावधानी, सतर्कता या सख्ती सब हमे रखनी होगी । 
     आप रखेंगे न ? 
  

टिप्पणियाँ

  1. " हमारे तो भगवान जगन्नाथ भी 15 दिन का एकांत वास लेते है साल में एक बार । मान्यता है कि वो बीमार होते है" ,
    बिलकुल ,यकीनन इसी बहाने प्रकृति हमें अपने स्वस्थ के लिए सचेत कर रही हैं ,हमारी आवश्तकताओं की पूर्ति तो हम रात को दिन बना कर भी काम करते रहे तब भी नहीं हो पायेगी ,सुंदर संदेश देती रचना सादर नमन

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    उत्तर
    1. सच कहा आपने....आवश्यकताओं की पूर्ति तो हम कभी नहीं कर पायेंगे। फिलहाल तो कोरोना से लड़ने के लिये सब साथ रहे

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -3-2020 ) को " तब तुम लापरवाह नहीं थे " (चर्चा अंक -3650) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  3. सारगर्भित एवं विचारणीय लेख आदरणीया
    सादर

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