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सुबह सुबह

बड़ी खूबसूरत सुबह ! 
सुबह के 8:50 हो चुके है, सुरज धीमे धीमे से चढ़ा जा रहा है। मेरे ड्रॉईंग रुम में शांति से धूप पसरी पड़ी है। खिड़कियां आज बेखौफ खुली है सभी कमरों की, क्योकि  होर्न और आवाजाही का शोरगुल नहीं है । हाँ....पक्षीयों का कलरव लागातार बना हुआ है । पंखें की आवाज भी साफ सुन रही हूँ। पड़ौस की बिल्डिंग में शायद कोई पूजा कर रहा है, उस पूजाघर से आती घंटी की आवाज सुन पा रही हूँ । कूकर की सीटी तो खैर रोज ही लगभग हर घर से सुनने मिलती है पर आज ये थोड़े विलम्ब से बज रही है। अब मैं कह दूँ कि दाल के तड़के की खुशबू मेरी खिड़की से आ रही है तो अतिश्योक्ति होगी, क्योकि ये मुम्बई है जनाब। ये अलसुबह अपने काम की ओर भागती है पर अब जबकि काम घर पर रहकर किये जा रहे है ,तो अब ये मुम्बई,कम से कस आधी मुम्बई नींद में है। ये दिन रात भागता शहर है...इसका थमना , ठिठकना बहुत बड़ी बात है । शहर के व्यस्ततम इलाके में रहने की वजह से ये शांति कुछ अनोखा सा महसूस करा रही है । न जाने कितनी ही आवाजें रोज के शोरगुल में दब जाती थी, आज साफ सुनायी दे रही है । सड़क पर सन्नाटा है। सड़के भी आज सुकून से सोयी है , उन पर कोई पदचाप भी नहीं है लेकिन आसमान पक्षियों के साथ जैसे आनंद मना रहा हो ।  मैं उन चुनिंदा लोगो में से हूँ जो अलसुबह को उठ जाते है और भोर को दिन में तब्दील होते देखते है । जो लोग सूर्योदय के बाद उठते है वो क्या जाने इस भोर का स्वाद। सूरज इन दिनों मुस्कुरा कर ऊपर की ओर उठ रहा है। हर रोज उसकी मुस्कुराहट धूएं तले धुमिल हो जाती थी, लेकिन कुछ दिनों से धुआं थोड़ा कम है तो उसकी मुसकान थोड़ी खिल गयी वैसे जैसे सूरजमुखी की खिलती है उसे देखकर। मेरी खिड़की के पौधें , यूँ तो हर रोज मुस्कुराते है पर आज विभोर है मेरी तरह । पत्ता पत्ता हौले हौले हिल रहा है । खिले फूलों के रंग सूर्ख हो गये। जो पत्ते पीले होकर गिरने वाले है वो भी जैसे तृप्त है। आज का दिन आलसी नहीं है, स्फूर्ति वाला है ...कम से कम मेरे लिये तो । 
अभी के लिये बस इतना ही....
दोपहर तक एक नयी पोस्ट के साथ आती हूँ....ये अभी वाले भाव थे जो बेताब थे निकलने, बिखरने शब्दों के रुप में। 

टिप्पणियाँ

  1. अति सुंदर ,मैं भी मुंबई में ही हूँ और मेरी मनोदशा भी लगभग यही हैं ,सुकून भरा ,सादर नमस्कार आपको

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    1. नमस्कार... मै थाना से हूँ, कभी मौका मिला तो मिलेंगे

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-03-2020) को    "घोर संक्रमित काल"   ( चर्चा अंक -3649)      पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    आप अपने घर में रहें। शासन के निर्देशों का पालन करें।हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. ये मन से निकले सहज सत्य भाव है, बहुत सुंदर आत्म मुग्धा जी बहुत सुंदर पोस्ट।

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