चाहती हूँ मैं
कि मेरी खुशियाँ तुम्हे लग जाये
और , तुम्हारे दुखों को मैं अपना लू
आँख में आये आंसू तुम्हारे
तो अपनी पलकों में सहेज लू
कही मिले ना आसरा तुझे
तो अपने आँचल में समेट लू
हंसो जब तुम
तो तुम्हारी मुस्कुराहट को गले लगा लू
जब ख़ुशी से चमके तुम्हारी आँखे
तो उसे अपनी कामयाबी बना लू
गलत राह भी ग़र चलो तुम
तो वो राह भी तुम्हे चुनने ना दूँ
क्योकि ;
माँ हूँ तुम्हारी
चाहती हूँ तुम्हे परिपूर्ण देखना
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 08 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर माँ हूं मैं ।
जवाब देंहटाएंहाँ....कैसे गलत राह चुनने दू ना
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