उसने सबको
खुली हथेली पर बोया था
बाँधकर संजोना नहीं आता था उसे
मुठ्ठी बाँधना भी तो न जानती थी वो
फिर भी......
वो लोग सिमटे रहे
उसी हथेली में
जबकि
वो देना चाहती है उन्हे
उनके हिस्से की जमीं
और
एक बड़ा सा आसमां
जहाँ वो अपनी जड़े फैला सके
लंबी उड़ान भर सके
वो खूद बरगद है
चाहती है
हथेली पर अंकुरित
नन्ही पौध को बरगद बनाना
टिप्पणियाँ
जय मां हाटेशवरी.......
आप सभी को पावन दिवाली की शुभकामनाएं.....
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
03/11/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
कुछ भी समझो मगर इस बरगद के साथ आपने इसकी जड़ें मेरी नम जमीं तक पहुंचा दी है।
बहुत खूब
बहुत सुन्दर।