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धिक्कार है

खुशी होती थी उसे 
अपने वजूद पर
मूक जानवरों की पीड़ा समझती थी वो
स्नेह से दुलारती भी थी शायद
लेकिन नहीं जानती थी वो, कि
जानवर तो मूक होता है
स्नेह की भाषा समझ जाता है
लेकिन
खतरनाक होता है वो जानवर
जो बोलता है एक मानवीय भाषा
पर,
जो स्नेह नहीं, जिस्म समझता है 
जरा सोच कर देखो.....
कितना दर्द सहा होगा उसने
पहले आत्मा को रौंदा गया
फिर शरीर को.....
कहते है
दर्द का एक मापदंड होता है 
जिसमे शायद 
दूसरे नम्बर पर प्रसव पीड़ा आती है
जो सिर्फ स्त्री के हिस्से आती है
स्त्री सहर्ष इसे सहती है 
सृष्टि रचती है
लेकिन सुनो
मैंने कही सुना है, कि
पहले पायदान पर आता है
देह को जीवित जला देने वाला दर्द
ये दर्द नहीं था उसके हिस्से में
फिर क्यो जली उसकी देह ?
विघ्नहर्ता थे उसके गले में
क्यो उसके विघ्न हर न सके ?
डरते डरते बात करते हुए
उसने फोन रख दिया
क्यो डर हावी था उस पर ? 
अरे ! तब तो 12 भी नहीं बजे थे
और न ही था उसके साथ कोई तथाकथित दोस्त
जिसके आधार पर 
उसका कोई चरित्र निर्माण किया जा सके 
अब तो 
कोई लांछन भी नहीं लगाया जा सकता उस पर 
फिर क्यो वो तिल तिल मरी ?
अब मीडिया उसके घर जायेगा
उसकी बहन को कुरेदेगा
उसकी माँ से उसकी मासूमियत का जायजा लिया जायेगा
उसके दोस्तो से भी कहानी सुनी जायेगी
मुद्दा गरमायेगा
शायद कम या शायद बहुत अधिक 
फिर सारा मामला ठंडा हो जायेगा 
और
अगले साल बरसी पर फिर याद किया जायेगा 
धिक्कार है....
लानत है हम सब पर
शर्मनाक है ऐसे कानून
जो इन दरिंदों के लिये मृत्युदंड का कानून न बना सकते ।


टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 01 दिसम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आत्ममुग्धा ने कहा…
मेरी रचना को एक प्रतिष्ठित मंच देने के लिये शुक्रिया
अनीता सैनी ने कहा…
जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-१२ -२०१९ ) को "जानवर तो मूक होता है" (चर्चा अंक ३५३६) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
SUJATA PRIYE ने कहा…
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण।
Onkar ने कहा…
बहुत सुन्दर कविता
Kamini Sinha ने कहा…
धिक्कार है....
लानत है हम सब पर
शर्मनाक है ऐसे कानून
जो इन दरिंदों के लिये मृत्युदंड का कानून न बना सकते
हाँ ,अब इससे कम सजा हो ही नहीं सकती जब तक ये दरिंदे सरेआम फॉंसी पर ना लटकाये जाए तब तक सब्र नहीं होगा।सिर्फ बेहतरीन रचना इसे नहीं कह सकती ये तो प्रत्येक नारी की हृदय का चीत्कार हैं।
आत्ममुग्धा ने कहा…
आपने सच कहा कि ये हर नारी मन की चीत्कार है
Sudha Devrani ने कहा…
बहुत ही हृदयस्पर्शी समसामयिक सृजन...
ऐसे नरपिशाचों से कैसे बचेगी नारी

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