जो जीवन जीना सीखाये
हर रंग में रंग जाना सीखाये
वो कृष्ण है
जो मान दे सभी को
सबके दिलों में समा जाये
वो कृष्ण है
जो रास रचाये,बंसी बजाये
महाभारत में शंखनाद करे
वो कृष्ण है
जो यशोदा का प्यारा है
देवकी का दुलारा है
वो कृष्ण है
जो रुक्मिणी का है....पर
राधा के बिना आधा है
वो कृष्ण है
पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा चिनार और पिता
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 25 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर माफी अनुपस्थिति के लिये
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंकृष्ण ही मोह ... कृष्ण की माया ...
जवाब देंहटाएंजग सारा कृष्णमय है ...
कृष्ण ही कृष्ण
हटाएंमाफी चाहती हूँ कि मैं समय पर उपस्थित नहीं हो सकी 🙏
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