खुशियाँ क्या होती है?
आज चहकते चिनार से पूछिये
घाटी की वादियों से पुछिये
पुछिये उन नजारों से
जो सहमे सहमे से जन्नत की सैरगाह कहलाते थे
खुशियां क्या होती है ?
उन लाखों धड़कते दिलों से पुछिये
जो अपने ही घर में पराये से रहते थे
पुछिये उन पहाड़ों से
जो खुशी से आज थोडें ऊँचें से अधिक है
उन झीलों से पुछिये
जो आज झिलमिला कुछ ज्यादा रही है
देवदार के पेड़ आज आमादा है
आसमान को गले लगाने
घाटी की सड़के हमेशा की तरह लहरदार है
पर आज बेखौफ कुछ ज्यादा है
पुछिये उस लाल चौक से
जो विरान सा था....
देश का मस्तक होकर भी मुकुट विहिन था
उसकी खुशी आज बेहद बेहिसाब है
बदल गई है नजर
सज गया है हर मंजर
पुछिये मेरे कश्मीर से
जहाँ आज खुशियाँ दस्तक दे रही है
पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा चिनार और पिता
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपका लिखा सदैव की भांति शानदार होता है ...
हटाएं