तुम उड़ान भरो
पंखों में अपनी जमीनी खुशबू लेकर उड़ो
सातवें आसमान के भी पार उड़ो
तुम उड़ो पाँवों में बाँध कर घूंघरूँ
अपनी कामयाबियों के
और उड़ती रहो.....लागातर...बिना थके...अनवरत
तुम भारत पुत्री हिमा हो
तुम नन्ही सी हो
जो जीतने पर
खुश होकर दौड़ पड़ती है
तिरंगा अपने कांधे पर उठाकर
और सार्थक कर देती है
'विश्व विजयी तिरंगा प्यारा'
की धारणा को
तुम मान हो देश का
गौरव हो, सम्मान हो
तुम बटोर लाई हो खुशियाँ
तुम समेट रही हो कुछ कालजयी लम्हें
तुम मुसकान हो देश की
माना कि....
ये देश ढ़िंढ़ोरा नहीं पीट रहा तुम्हारी सफलता का
शर्मिंदा है हम...
लेकिन यकिन मानो हिमा
मुक खड़ा यह देश भी छलका रहा है अपनी आँखे
बिल्कुल वैसे....
जैसे तुम्हारी छलकी थी राष्ट्रगान को सुनकर
जब पराये देश में फिरंगियों के बीच
ऊँचा उठता है तिरंगा .....और
गुंज उठता है जन गन मन
तो हम सब नतमस्तक हो जाते है तुम्हारे आगे
तब तुम अकेली....
एक पुरा देश होती हो हिमा
तुम समुचे भारत को खुद में समेट लेती हो
तुम्हे प्यार बहुत सारा हिमा 😍
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
टिप्पणियाँ
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर स्नेह की पाती.