लगभग दो ढ़ाई महिने पहले मिल कर आई थी माँ (दादी) से। बहुत कमजोर लग रही थी और इस बार जैसे हिम्मत भी हार गई हो....बिल्कुल टुटी हुई। मेरी आँखे तब भी भर आई थी और अपने घर आने के बाद भी, उन्हे याद कर अक्सर भर आती थी। अभी दो दिन पहले फोन पर बात हुई तो माँ की आवाज मुझे कुछ अलग सी लगी । भाभी और पापा से बात हुई तो पता चला कि माँ पहले से भी कमजोर हो गई है, खाना ना के बराबर कर दिया है....बस, तब से मन अटक रखा है....यंत्रवत काम करते हुए भी मन उनके इर्द गिर्द ही भटक रहा है। मेरा उनके पास राखी पर जाना तय था, लेकिन मन नहीं मान रहा था और मैंने कल की ही टिकिट बना कर पापा को फोन कर दिया कि मैं आ रही हूँ। मैं अचानक पहूँच कर माँ को सरप्राइज देना चाहती थी, उनकी झूर्रियों को हँसते देखना चाहती थी । मम्मी के जाने के बाद माँ मे ही अपना सब देखती हूँ मैं। वो दुनियां की सबसे प्यारी और सबसे खुबसूरत दादी है।
लेकिन......अभी अभी पापा का फोन आया बोले कि बेवजह आकर परेशान मत हो , माँ ठीक है एकदम । माँ से बात करवाई और बेचारी मेरी दादी.....मेरे दादाजी और पापा के प्रेशर में आकर बोलती है कि मैं ठीक हूँ , तु क्या करेगी आकर , यह पहली बार है जबकि मेरी दादी मेरा आना टाल रही थी, वरना मैं कितना भी उनके पास रह जाओ उनका मन नहीं भरता मुझसे।
मैने प्यार से कहाँ ," माँ,हमेशा तो बुलाती रहती हो और आज आ रही हूँ तो मना कर रही हो "। मैं परसो आपके पास पहूँच रही हूँ, बस।
मैंने महसूस किया कि अचानक माँ की आवाज में एकदम से खनक आ गई और वो बोली कि आजा । उनकी वो आवाज मेरी उदासी ले भागी । दादाजी और पापा को भी साफ बोल दिया कि मेरा मन है आने का सो मैं आ रही हूँ , आप आदर्शवादिता को बीच में मत लाईये ......और बस....अब बेसब्री से मेरा इंतजार है वहाँ ।
रिश्ते हमेशा स्नेह की आँच चाहते है ❤️
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21 -07-2019) को "अहसासों की पगडंडी " (चर्चा अंक- 3403) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी