मैं सपने देखती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ
चार दशक जीने के बाद
रिश्ते नातों की लंबी फेहरिस्त में
खुद को घोल देने के बाद
हर कटू शब्द को जीते हुए
कुछ प्रशंसाओं को पीते हुए
अपने अंदर कुछ बचा पाती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ
चक्करघिन्नी सी जीते हुए
सिर्फ हाउसवाइफ कहलाते हुए
सुबह का नाश्ता बनाते हुए
पति के खानें में थोड़ा नमक कम करते हुए
बच्चों की शाम में मिल्कशेक सी घूल जाती हूँ
हाँ.....मै अब भी सपने देखती हूँ
रिश्तेदारी में लेनदेन को निपटाते हुए
सासू माँ को समझाते हुए
परम्पराओं को ढ़ोते हुए
कुछ रीती रिवाजों को
चुपके से ताक पर रख देती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ
जींस भी पहन लेती हूँ
हील्स भी पहन लेती हूँ
मोटा लाइनर आँखों पर सजा
मेनोपॉज से पंगा लेती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ
जिम्मेदारियों से भागती नहीं
मुसीबतों से डरती नहीं
हौसला हूँ खुद का, खुद से प्यार करती हूँ
हाँ.....मैं अब भी सपने देखती हूँ
शिकन में ठंडी हवा का झौका हूँ
बच्चों की चुहल करती दोस्त हूँ....तो
ब्रेकअपस् में सहारा पाती बेल का आधार हूँ
लेकिन....
अपनी गलतियों की मैं खुद जिम्मेवार हूँ
अपनी खामियों को सुधारती
सतरंगी सपने बुनती अतरंगी सी
मैं आधी सी बची जिंदगी हूँ...और
इसी बची जिंदगी में पुरे होगे सपने
क्योकि....मैं अब भी सपने देखती हूँ
पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा चिनार और पिता
जितना मैं आपको पढ़ता जा रहा हूँ उतना ही आपका मुरीद हो रहा हूँ l
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 16, 2019 को साझा की गई है......... एक ही ब्लॉग से...मेरे मन का एक कोना परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
हटाएंसुन्दर रचना
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