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प्रेम

क्या आसान है प्रेम को समझ पाना
शायद नहीं....
पर मुश्किल भी नहीं, लेकिन
इसकी परिभाषा इतनी गहन बना दी गई है कि
साधारण इंसान समझ ही न पाये
असल में प्रेम परिभाषाओं के परे है
बस महसूस कर पाने की अवस्था है
अगर एक बार आपने
चख लिया इसका स्वाद
तो आप जीवन भर के लिये प्रेम को पा लेते है
बस, अनुभूत करने की आपकी क्षमता ऐसी हो
जो आपकी कल्पनाओं से भी बाहर हो
कोई भी युगल
पति-पत्नी हो या प्रेमी-प्रेमिका
धीमे धीमे वक्त के पहियों पर चलते हुए
प्रेम मे रहते हुए
एक न एक दिन
माँ बेटे सा ताना बाना बुन ही लेते है
वे सुलझा लेते है प्रेम की गूढ़ गुत्थियां
और पहूँच जाते है
आध्यात्मिकता के सर्वोच्च पायदान पर
बस इतना ही तो है प्रेम
पर बिना चखे कैसे मानोगे
बिना जीये कैसे जानोगे
प्रेम में खोकर ही तो प्रेम पाओगे
ये वो पक्का रंग है
जो छूटता नहीं है
वो रमता है बस धूनी की तरह

टिप्पणियाँ

Virendra Singh ने कहा…
पर बिना चखे कैसे मानोगे
बिना जीये कैसे जानोगे
प्रेम में खोकर ही तो प्रेम पाओगे
ये वो पक्का रंग है ....
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क्या बात है!बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना। आपको बधाई। सादर।
कई दिनों बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर... पोस्ट पढ़ी तो शानदार लगी लफ़्ज़ों में गहरे अहसास .....बहुत ही खूबसूरत
आत्ममुग्धा ने कहा…
आभार 😊
राम नवनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
आत्ममुग्धा ने कहा…
सराहने का और आने का बेहद शुक्रिया 😊
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 16, 2019 को साझा की गई है......... एक ही ब्लॉग से...मेरे मन का एक कोना आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मन की वीणा ने कहा…
बहुत सुंदर अहसासों का ताना बाना है प्रेम जो खुद ही बुनना होता है एक जुला ए जैसे और महसूस करना होता है वो बुनावट जो हाथों से नही दिल से कई गई है।
वाह बहुत सुंदर /अनुपम।
आत्ममुग्धा ने कहा…
प्रेम एक अहसास ही तो होता है....शुक्रिया
रेणु ने कहा…
बहुत भावपूर्ण सृजन आत्ममुग्धा जी | प्रेम को एक और नए ढंग से पर्भाषित किया है आपने | सचमुच प्रेम को जीना एक अत्यंत मधुर एहसास ही | सस्नेह शुभकामनायें |

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