नहीं, युद्ध कभी विकल्प नहीं हो सकता
कभी सोच कर देखो
उस घर की चौखट को जिसे लाँघकर जाने वाला
अब लौटकर नहीं आयेगा,लेकिन
उधड़ती रंग की पपड़ियों में से
एक शहीद के घर होने का गर्व झाँकेगा
झांक कर देखो
उस पिता की आँखों में
जो पथरा गई है, लेकिन गर्वित है
कलेजा टटोल कर देखो
उस माँ का
जो मीडिया के सामने कहती है
कि गर्व है मुझे अपने बेटे पर
महसूस करके देखो
उस नवविवाहिता के चुड़ियों भरे हाथ
बात करके देखो
पति के साथ दो दशक जी चुकी
उस महिला से
जो अब एक शहीद की गर्वित विधवा है
सुनना उनके बच्चों की किलकारियां
देखना उनकी आँखों की चमक
जो अनजान है इस गर्व से, कि
उनके पिता शहीद है
शहीदों के साथ जुड़ा
ये शब्द 'गर्व' आखिर है क्या
हाँ.....हम सब है गर्वित
हमारी सेना पर, हमारे जवानों पर
लेकिन असमंजस में हूँ ,कि
क्या पथरा गई वो दो जोड़ी बूढ़ी आँखे
वाकई गर्व में है ?
क्या शान से खड़ा रह पायेगा वो घर
जिसे सहेजने वाले हाथों का ही पता नहीं ?
क्या उन नन्हों की किलकारियां खुशी से गूँजती रहेगी सदैव?
क्या वो चुड़ियां बिना खनके रह पायेंगी ?
क्या महीने की तीस तारीख अब भी
उस पत्नी के लिये बेफिक्र आयेगी ?
हम सब के लिये आसान है ये कहना, कि
युद्ध ही विकल्प है
आसान है जोश भरी बातें करना
आसान है गर्व करना
आसान है मोमबत्ती जलाना
आसान है विडियों और देशभक्ति शेयर करना
लेकिन कुछ आसान नहीं होता उन परिवारों के लिये
जो खो चुके है अपने कलेजे के टुकड़े
कितना मुश्किल होता है ना
गर्वित रहते हुए ,दर्द को जीना
न जाने कितने ऐसे घर उजड़ जायेंगे, और
हम गर्व करते बैठे रहेंगे
घरों में बैठकर युद्ध की बात करने वाले हम जैसे लोग
कहाँ समझ पाते है , कि
नहीं, युद्ध कभी विकल्प नहीं हो सकता
पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा चिनार और पिता
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