यूँ तो नमकीन ही होते है
पर फिर भी
हर आँसू में फर्क होता है
वो एक आँसू
कुछ ऐसा होता है
जो 'सब' से जुदा होता है
वो सिर्फ कांधा नही भिगोता
वो सिंचित करता है
मन के सूखे बंजर रेगिस्तान को
वो बस अविरल बहना जानता है
अकारण ही.....
वो दुखो से न बनता है
और वो खुशी का भी न होता है
भावनाओं का उफान मात्र भी नहीं होता है
वो सब से जुदा होता है
वो बनता है एक अद्भुत संयोग से
जो अवर्णनीय है
वो कभी राम भरत के मिलाप में दिखता है
कभी सुदामा के चरण पखारते
द्वारिकाधीश की आँखो में झलकता है
तो कभी वो मीरा की आँखों में सजता है
इसका ज्यादा उदाहरण न मिलता
क्योकि ये अपवाद होता है
अनमोल होता है
अलौकिक होता है
सबकी आँखों में न होता है
वो मन नहीं आत्मा को हल्का करता है
वो बूंद सा ढ़ूलकता नहीं है
अनवरत बहता है
वो घर की तामीर में
एक कोना नहीं तलाशता है
वो तो बस निर्विघ्न बहता है
लेकिन
वो सैलाब, सुनामी, तूफान या समंदर भी न होता
अक्सर इन्ही की तो उपमा दी जाती है इसे
वो तो भागीरथी सा होता है
शांत बहती किसी नदी का किनारा होता है
जो सहारा न तलाशता
बस, बहती नदी से लगकर
मन के खुरदरे किनारों को
चिकना कर गोलाई देता रहता है
वो पखारता रहता है उसको
जिसके लिये वो जन्म लेता है
ये बहुत दुर्लभ होता है
समझ के परे होता है
अगर ये तुम्हें मिलता है
तो सिर्फ पानी समझने की भुल मत करना
ये एक उपहार है
जिसके लिये प्रकृति ने तुम्हें चुना है
इसे सहेजना भी तुम्हारे बस में न है
बस, हो सके तो इसे महसूसना
क्योकि
जिसकी भी आँखों से बहता है
अपनी आत्मिक तृप्तता को वही जानता है
लेकिन
वो मूक हो जाता है
असमर्थ हो जाता है बताने में
पर हाँ
जिन दो लोगो के बीच
यह बहता है,
वो रिश्ता सबसे ऊपर होता है
सभी बातों से ऊपर
शाश्वत सा
तुम बस,
बह जाना साथ इसके मूक बनकर ही
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
टिप्पणियाँ
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।