सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उर्जा

सकारात्मक शब्द आपको हमेशा उर्जा देते है। आपके हौसलों को एक उड़ान देते है ,लेकिन जब यह सकारात्मकता अनायास निकल कर आये तो शायद यह उर्जा का विशुद्ध रूप होता है और आप एक संतुष्टि सी महसूस करते है। जिस अनायास सकारात्मकता की मै यहाँ बात कर रही हूँ,  वो है बच्चों के मुहँ से निकले शब्द, जो आपकी प्रशंसा के लिये, आपके लगाव के लिये, आपके द्वारा किये जा रहे काम को देखकर, बस, अनायास निकल पड़ते है।
     मैं जब भी बच्चों के मुख से अपने लिये कुछ भी अच्छा सुनती हूँ तो मन जैसे गर्म तवे पर नाचती पानी की बूंद सा नाच जाता है।  अक्सर मेरे मित्र फेबु और व्हॉट्सऐप स्टेटस पर लगायी अपनी खुराफातों के लिये मुझे सराहते है,जो कि बहुत सामान्य सा है मेरे लिये, लेकिन जब कुछ मित्र कहते है कि हम अपने बच्चों को आपका काम दिखाते है और वे आपके फैन है....... यकीन मानिये,मेरी कला सार्थक हो जाती है। कुछ अध्यापक मित्र जब अपने विद्यार्थियों को ,किसी भी बात को समझाने के लिये मेरी कला को माध्यम बनाते है ,उस एक क्षण में जैसे मैं स्वयं को जी लेती हूँ।
ऐसी ही कुछ  छोटी छोटी बाते मेरे जीवन का अनमोल हिस्सा बन जाती है.....अभी कल परसों की ही बात है ,जो मुझे आह्लादित कर गयी।
    एक ही बिल्डिंग में रहने की वजह से परिवार के बच्चें अक्सर शाम को घर पर आ जाते है और मेरी ड्रॉइंग को देखकर खुश होते है और एकदम इनोसेंसी में हमेशा बोलते है "वाव, बड़ी मम्मी" 😍
     इन दिनों मैं एक रिलिफ वर्क पर काम कर रही हूँ। परसो जब मैं उसमे रंग भर रही थी तो प्रिशा (नौ वर्षीया) आ गयी, मैने कहा कि बाद में आना, मै काम कर रही हूँ तो वह बोली कि मैं आपको काम करते देखूँ? उसकी मासूमियत देखकर मैं बोली कि ओके, पर मस्ती नहीं..... अब मेरा और उसका वार्तालाप आप हूबहू पढ़िये.....
प्रिशा : वाव, बड़ी मम्मी, ये आपने बनाया? 
मैं  : हाँ, कैसा है?
प्रिशा : भोत मस्त है, कैसे कर लेते हो आप ये? 
मैं  : सीख रही हूँ एक सर से
प्रिशा : वाव, आप सीख रहे हो, आपके सर बच्चों को भी सीखाते है? 
मैं  : हाँ, सीखना है तुझे? 
तभी उसकी नजर बड़े वाले रिलिफ पर और एक छोटे म्यूरल गणेश पर पड़ी और वो तत्काल मासूमियत से बोल पड़ी......
प्रिशा : ये सब आप लगाओगे कहाँ ?
मै  : एक्जीबिशन में
प्रिशा ( आँखें फाड़ते हुए)  : वाव, आप एक्जीबिशन लगाओगे?
मैं  : हाँ
प्रिशा : कहाँ लगाओगे?  थाना में?  कितना प्राइस् रखोगे?
मैं  : नहीं, मुम्बई में 😍 बड़े रिलिफ का 35000
प्रिशा फिर आँखें फाड़ते हुए : 35 थाउजैंड...... कौन देगा ?
मैं  : सब देते है
प्रिशा  : एक पीस का या तीनो पीस का( एक्चुली वो तीन पीस का म्यूरल है)  ?
मै  : तीनो का
प्रिशा  : तीनो का ,एक का क्यो नहीं  ? और इसका कितना प्राइस लगाओगे (जो काम मैं कर रही थी और वो बड़ी उत्सुकता से उसे देख रही थी)
मै  : इसका... 5000
प्रिशा  : बस, ओनली फाइव थाउजैंड
मै  : हाँ, कम है 🤔
प्रिशा  : फिर आप बेच दोगी इसे ( मायूसी से )
मैं  : हाँ 😍
प्रिशा : बड़ी मम्मी, आप बच्चों की क्लास क्यों नहीं लेते?
मैं  : लूँगी ना, लेकिन वर्कशॉप सिर्फ दो दिन का
प्रिशा  : कितनी फीस रखोगे?
मैं  : 500 रू
प्रिशा  : सिर्फ दो दिन का, ओके.... मै और मेरी फ्रैंड सीखेंगे आपसे
मैं मुस्कुराते हुए : तुझे तो मैं ऐसे ही सीखा दूँगी (गाल थपथपाते हुए)  तेरी बड़ी मम्मी हूँ ना  😍
प्रिशा चहकते हुए: सच्ची, मै आपको अपनी ड्रॉइंग बुक दिखाती, मै लेकर आती
5 मिनिट बाद वो अपनी ड्रॉइंग बुक लेकर आई और मैने अपना काम छोड़ उसे देखा, कुछ करेक्शन किया, थोड़े टिप्स दिये..... फिर उसे ट्यूशन जाना था, वो बोली, अब मै जाती हूँ कि तभी वो वापस आई और बोली
प्रिशा  : बड़ी मम्मी, जुलाई मे मेरा बर्थडे  आने वाला है
मैं  : ओके, मै केक बना दूँगी(उसके बर्थडे पर मैं अक्सर उसके लिये कपकेक बनाती)
प्रिशा  : बड़ी मम्मी, प्लीज आप वो पेंटिंग बेचना मत, मेरे बर्थडे पर मेरे पास पैसे आयेंगे तो मैं आपसे खरीद लूँगी
मैंने जोर से हँसते हुए उसे गले लगा लिया, सुकून सा भर गया था दिल में 😍

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

धागों की गुड़िया

एक दिन एक आर्ट पेज मेरे आगे आया और मुझे बहुत पसंद आया । मैंने डीएम में शुभकामनाएं प्रेषित की और उसके बाद थोड़ा बहुत कला का आदान प्रदान होता रहा। वो मुझसे कुछ सजेशन लेती रही और जितना मुझे आता था, मैं बताती रही। यूँ ही एक दिन बातों बातों में उसने पूछा कि आपके बच्चे कितने बड़े है और जब मैंने उसे बच्चों की उम्र बतायी तो वो बोली....अरे, दोनों ही मुझसे बड़े है । तब मैंने हँसते हुए कहा कि तब तो तुम मुझे आंटी बोल सकती हो और उसने कहा कि नहीं दीदी बुलाना ज्यादा अच्छा है और तब से वो प्यारी सी बच्ची मुझे दीदी बुलाने लगी। अब आती है बात दो महीने पहले की....जब मैंने क्रोशिए की डॉल में शगुन का मिनिएचर बनाने की कोशिश की थी और काफी हद तक सफल भी हुई थी। उस डॉल के बाद मेरे पास ढेरों क्वेरीज् आयी। उन सब क्वेरीज् में से एक क्वेरी ऐसी थी कि मैं उसका ऑर्डर लेने से मना नहीं कर सकी । यह निशिका की क्वेरी थी, उसने कहा कि मुझे आप ऐसी डॉल बनाकर दीजिए । मैंने उससे कहा कि ये मैंने पहली बार बनाया है और पता नहीं कि मैं तुम्हारा बना भी पाऊँगी कि नहीं लेकिन निशिका पूरे कॉंफिडेंस से बोली कि नहीं,