सृष्टि..... ईश्वर की बनायी सबसे बेहतरीन रचना। सब अद्भुत और खुबसुरत है यहाँ, अगर हम महसूस कर सके तो.... लेकिन अक्सर होता यह है कि हम सुंदरता को महसूस करना तो दूर, जी भर निहार भी न पाते,लेकिन यकीन मानिये प्रकृति कभी आपको निराश नहीं करेंगी, वो आपको भर भर कर प्यार देगी.... बदले में कुछ वापस भी न चाहिये उसे..... वो कहते है ना.... अनकंडिशनल लव....बस, वैसा ही 😍
इसके पास बैठे और बाते करे मन की.....मंद बयार आपकी बातों को सहलायेगी।
कभी शांत और निश्चल मन लेकर किसी झरने के पास बैठे और सुने प्रकृति के संगीत को.....
कभी खाली मन लेकर निहारे दूर तक पसरी हरियाली को और भर ले मन के खाली कोनों को.......
कभी आधी रात को चुपचाप झींगुर का बोलना सुने तो कभी अलसुबह पिनड्रॉप साईलेंस में दुर से आती किसी पंछी की चहचहाहट पर ध्यान केंद्रित करे.......
कभी बैठ जाये विशालकाय पहाड़ों के सामने और स्वयं का बौनापन महसूस करे........
कभी किसी नदी किनारे बैठे और बह जाये उसके साथ..... कभी नदी किनारे के पत्थरों से बातें करे, उनकी गोलाई चिकनाहट को निहारे और 'पत्थरदिल' शब्द का प्रयोग करने से पहले एक बार सोचे........
कभी सागर किनारे जाये और लहरों के उफान को देखकर अपने मन के आवेग संवेग को लगाम दे तो कभी शांत समुद्र की तरह स्वयं को गहरा बनाये.......
कभी चंचल बने अठखेलियाँ खाती नदी सा तो कभी खिल जाये इंद्रधनुष सा.....
कभी कंचनजंघा पर पड़ती पहली सुनहरी किरण को अपनी आँखों में सजा ले......
कभी पानी भरे बादलों को देखे और खुद के मन को हल्का करे.....
कभी बारिश की फुहारों में भीगे और भीगो दे मन की तपिश को भी.....
कभी किसी पगडंडी या कच्चे रास्ते पर दौड़ लगाये और पीठ थपथपाये अपने अंदर के बच्चें की.....
कभी किसी पठार पर पत्थर का सिरहाना लगाये और टिमटिमाते तारों भरे नभ के आगोश में महसूस करे खुद को.....
करके देखीये, आप जी उठेंगे।
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
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