राजकुमार सिद्धार्थ ने जब महल छोड़ा था तो उन्हें एक गुरू की तलाश थी जो मुक्ति का मार्ग दिखा सके, और उन्होने दो आचार्यों आलार कालाम और उद्रक से आध्यात्मिक शिक्षा ली। 'अपदार्थता' (ध्यान साधना की उच्चतर अवस्था) और 'पायतन समाधि' तक के पड़ाव उन्होने शीघ्र पूरे कर लिये लेकिन ध्यान साधना के दो सर्वोच्च तथा मान्य आचार्यों से शिक्षा पाकर भी सिद्धार्थ अनुत्तरित रहे। तब उन्होने निश्चय किया कि बोधिसत्व की प्राप्ति के लिये वे स्वयं साधना करेंगे और अपने गुरू आप बनेंगे और इस तरह उन्हें संबोधि की प्राप्ति हुई।
यहाँ सब हमे सीखाते है, सब किसी न किसी हद तक हमारे गुरू है, लेकिन ये भी सच है कि हमारा सबसे बड़ा गुरू हम स्वयं है.....हालांकि बोधिसत्व, संबोधि और बुद्ध होना तो असंभव है, हमे तो बस सही गलत, चेतन अचेतन, अच्छे बुरे का बोध हो जाये, हमारी बुद्धि का प्रवाह सही हो जाये..... हम बस सबुद्ध बन जाये, वही बहुत है ।
हर रोज सुबह की सैर मुझे पूरे दिन के लिये शारीरिक मानसिक रूप से तरोताजा करती है। सैर के बाद हम एक भैयाजी के पास गाजर, बीट, हल्दी, आंवला ,अदरक और पोदीने का जूस पीते है, जिसकी मिक्सिंग हमारे अनुसार होती है। हम उनके सबसे पहले वाले ग्राहक होते है , कभी कभी हम इतना जल्दी पहूंच जाते है कि उन्होने सिर्फ अपना सब सामान सैट किया होता है लेकिन जूस तैयार करने में उन्हे पंद्रह मिनिट लग जाते है, जल्दबाजी में नही होती हूँ तो मैं जूस पीकर ही आती हूँ, वैसे आना भी चाहू तो वो आने नहीं देते , दो मिनिट में हो जायेगा कहकर, बहला फुसला कर पिलाकर ही भेजते है। उनकी अफरा तफरी और खुशी दोनो देखने लायक होती है। आज सुबह भी कुछ ऐसा ही था, हम जल्दी पहूंच गये और उन्होने जस्ट सब सैट ही किया था , मैं भी जल्दबाजी में थी क्योकि घर आकर शगुन का नाश्ता टीफिन दोनों बनाना था। हमने कहां कि आज तो लेट हो जायेगा आपको, हम कल आते है लेकिन भैयाजी कहाँ मानने वाले थे । उन्होने कहा कि नयी मशीन लाये है , आपको आज तो पीकर ही जाना होगा, अभी बनाकर देते है। मुझे सच में देर हो रही थी लेकिन फिर भी उनके आग्रह को मना न कर स...
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