राजकुमार सिद्धार्थ ने जब महल छोड़ा था तो उन्हें एक गुरू की तलाश थी जो मुक्ति का मार्ग दिखा सके, और उन्होने दो आचार्यों आलार कालाम और उद्रक से आध्यात्मिक शिक्षा ली। 'अपदार्थता' (ध्यान साधना की उच्चतर अवस्था) और 'पायतन समाधि' तक के पड़ाव उन्होने शीघ्र पूरे कर लिये लेकिन ध्यान साधना के दो सर्वोच्च तथा मान्य आचार्यों से शिक्षा पाकर भी सिद्धार्थ अनुत्तरित रहे। तब उन्होने निश्चय किया कि बोधिसत्व की प्राप्ति के लिये वे स्वयं साधना करेंगे और अपने गुरू आप बनेंगे और इस तरह उन्हें संबोधि की प्राप्ति हुई।
यहाँ सब हमे सीखाते है, सब किसी न किसी हद तक हमारे गुरू है, लेकिन ये भी सच है कि हमारा सबसे बड़ा गुरू हम स्वयं है.....हालांकि बोधिसत्व, संबोधि और बुद्ध होना तो असंभव है, हमे तो बस सही गलत, चेतन अचेतन, अच्छे बुरे का बोध हो जाये, हमारी बुद्धि का प्रवाह सही हो जाये..... हम बस सबुद्ध बन जाये, वही बहुत है ।
ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर। दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया। हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है। खिलखिलाते...
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