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किताब

इन दिनों एक किताब पढ़ रही हूँ 'मृत्युंजय' । यह किताब मराठी साहित्य का एक नगीना है....वो भी बेहतरीन। इसका हिंदी अनुवाद मेरे हाथों में है। किताब कर्ण का जीवन दर्शन है ...उसके जीवन की यात्रा है। 
    मैंने जब रश्मिरथी पढ़ी थी तो मुझे महाभारत के इस पात्र के साथ एक आत्मीयता महसूस हुई और हमेशा उनको और अधिक जानने की इच्छा हुई । ओम शिवराज जी को कोटिशः धन्यवाद ....जिनकी वजह से मैं इस किताब का हिंदी अनुवाद पढ़ पा रही हूँ और वो भी बेहतरीन अनुवाद। 
    किताब के शुरुआत में इसकी पृष्ठभूमि है कि किस तरह से इसकी रुपरेखा अस्तित्व में आयी। मैं सहज सरल भाषाई सौंदर्य से विभोर थी और नहीं जानती कि आगे के पृष्ठ मुझे अभिभूत कर देंगे। ऐसा लगता है सभी सुंदर शब्दों का जमावड़ा इसी किताब में है। 
      हर परिस्थिति का वर्णन इतने अनुठे तरीके से किया है कि आप जैसे उस युग में पहूंच जाते है। मैं पढ़ती हूँ, थोड़ा रुकती हूँ ....पुनः पुनः पढ़ती हूँ और मंत्रमुग्ध होती हूँ। 
      धीरे पढ़ती हूँ इसलिये शुरु के सौ पृष्ठ भी नहीं पढ़ पायी हूँ लेकिन आज इस किताब को पढ़ते वक्त एक प्रसंग ऐसा आया कि उसे लिखे या कहे बिना मन रह नहीं पायेगा। वैसे तो हर प्रसंग ऐसा है जिसकी व्याख्या दर्ज होनी चाहिए। 
      बहुत ही सरल और सहज प्रसंग है। कर्ण और शोण (कर्ण का भाई) लगभग पाँच वर्षों के उपरांत अपनी माँ राधामाता से मिलने हस्तिनापुर से चंपानगरी में अपने घर पर्णकुटी में आये है । माँ खुशी से विभोर है और हड़बड़ा रही है । वो उन दोनो को देखते ही तुरंत भीतर जाती है और एक थाल में गरम अंगारे रखकर लाती है और चुपचाप मुठ्ठी भीतर की मिरचें उन अंगारों पर डालकर दोनो के चारो तरफ फिराती है और बाहर ले जाकर दूर पलट आती है। 
     अनायास ही मैं उस मातृत्व में भीग जाती हूँ कि माँ हर युग में एक जैसी ही हुई है । इसी किताब में एक जगह शिवाजी सावंत लिखते है' " माता ही विश्व में एकमात्र ऐसा व्यक्ति है, जिसके प्रेम को व्यवहार की तुला का ज्ञान ही नहीं होता" ।  
      इसके बाद जब कर्ण पर्णकुटी के भीतर आते है तो चौखट से उनका मस्तक टकरा जाता है तो राधामाता आश्चर्य से बोलती है 'कितना ऊँचा हो गया है  रे कर्ण ?' 
     कर्ण लाड में आकर बोलते है ....'ऊँहूँ, कर्ण नही______वसू ! 
     राधामाता कर्ण को वसू और शोण वसू भैया बुलाता था.....कुछ अधिकार और संबोधन हमेशा अटल रहने चाहिये।

आज के लिये बस इतना ही 😊

टिप्पणियाँ

Pammi singh'tripti' ने कहा…
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
Kamini Sinha ने कहा…
सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलबुधवार (17-8-22} को "मेरा वतन" (चर्चा अंक-4524) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आत्ममुग्धा ने कहा…
उत्साह बढ़ाने हेतु आभार
Anita ने कहा…
आपका आलेख किताब पढ़ने की उत्सुकता जगा रहा है
मन की वीणा ने कहा…
पुस्तक के बारे में उत्सुकता बढ़ता वृतांत।
सुंदर पोस्ट।
आत्ममुग्धा ने कहा…
जी शुक्रिया..... बेहतरीन पुस्तक है जितना सुना और जितना अब तक पढ़ा उस आधार पर
आत्ममुग्धा ने कहा…
फिर तो मेरा आलेख सार्थक हुआ....दिल से शुक्रिया आपका

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