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The Sky Is Pink

कुछ फिल्मे होती है जो मनोरंजक होती है, कुछ प्रेरित करती है, कुछ सोचने पर मजबूर करती है लेकिन कल जो फिल्म मैंने देखी, उसे देखते हुए कितनी ही बार और कितने ही दृश्यों में ऐसा लगा, जैसे पटल पर मैं ही हूँ और मैं खुद को ही जीते हुए देख रही हूँ। फिल्म है The sky is pink ....भावों जज्बातों से भरी एक सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म ।
        इस फिल्म में अपनी बच्ची के जीवन के लिये , जिस तरह माता पिता सब कुछ दाँव पर लगा देते है वो अंतस तक छू जाता है। हालांकि हरेक माता पिता अपने बच्चों के लिये अपना सब दाँव पर लगा देते है लेकिन परिस्थिति विशेष में स्थिर और दृढ़ रहकर बच्चे को पुरे मनोबल और मनोयोग से पालना सहज सरल नहीं होता है, वो भी एक लंबे वक्त तक। इतना लंबा वक्त , कि शायद कभी कभी सब्र की भी पराकाष्ठा हो जाये। फिल्म के कितने ही दृश्य मुझे भावविभोर कर गये।
         फिल्म में एक दृश्य है जब आईशा की रिपोर्ट्स उसके 16वे साल में बिल्कुल ठीक आती है और उसकी माँ खुशी से जैसे पागल हो जाती है....मुझे लगा जैसे मेरा वक्त मुझे दोहरा रहा हो....शगुन की रिपोर्ट्स भी उसके 16वें साल में पहली बार नॉरमल आई थी और मैं कितनी खुश थी उस वक्त वो व्यक्त नहीं कर सकती। भर भर के मिठाइयां बाँटी थी तब।
        एक दूसरा दृश्य है जिसमे आईशा अपने भाई को फोन पर कहती है कि मैं मरना नहीं चाहती और उसका भाई बात बात में उसको थोड़ा हँसा देता है जबकि वो खुद ये सुनकर टूटा हुआ है........मुझे फिर से लगा जैसे मेरे शगुन और रौनक हो, बस....परिस्थितियां थोड़ी सी अलग । इस दृश्य को देखकर मन को सुकून भी हुआ कि भाई बहन एक दूसरे का कितना बड़ा सहारा होते है.....बस, इसीलिये मैं सिंगल चाइल्ड के अगेस्ट हूँ। मेरा मानना है कि अपने लिये नहीं, बल्कि अपने बच्चे के लिये दूसरा बच्चा कीजिये । ये पीढ़ी इमोशनली बहुत वीक है , उन्हे हर वक्त कोई अपना चाहिये रहता है, आपके बाद भी उनके पास उनका अपना होना चाहिये भाई या बहन के रुप में। पिछले दिनों जिस तरह से मेरे बच्चों ने एक दूसरे को सहारा दिया है ..मुझे गर्व है उन दोनो पर 😘😘

        एक तीसरा दृश्य है जिसमे आईशा की माँ उसे लेकर मॉल में जाती है और जिस तरीके से वो अपनी बेटी की पसंद को देखते हुए एक टॉप उसे डमी से उतरवा कर पहना देती है.....इसी से मिलता जुलता वाकया मेरे साथ भी हुआ।
      
       एक और दृश्य है , जो पिछले दिनों जैसे मेरे जीवन में भी घटित हुआ....जिसमे आईशा अचानक रात को रोते हुए आती है और उसकी माँ उसे प्यार से पुचकारने लगती है.....यह पुचकार सबसे बड़ी मेडिसिन होती है किसी भी बच्चे के लिये। दुनिया की हर चीज से बड़ी होती है यह पुचकार। हर परिस्थिति से लड़ने और डट कर खड़े होने की सामर्थ्य देती है यह पुचकार। इस पुचकार के वक्त आपका बच्चा आप पर आँख मुंदकर भरोसा करता है ।
        फिल्म में पिता और भाई भावुक होकर टूटते हुए नजर आती है, पर माँ.....वो लागातार होमवर्क करती रहती है अपनी बच्ची के लिये...उसकी खुशी के लिये, उसकी बेहतरी के लिये....वो पुरी दुनिया से लड़ने की ताकत जुटा लाती है ।

      मुझे अपना वो वक्त याद आया जब मैं हर साल स्कूल के शुरुआती दिनों में प्रिसिंपल के ऑफिस में बैठ कर कहा करती थी कि मेरी बच्ची की नोटबुक लाल निशान से भरी रहेगी तो मुझे चलेगा, पर वो होमवर्क कभी भी प्रेशर में नहीं करेगी। हर साल उसकी ट्यूशन टीचर को कहती थी कि शगुन फेल होगी तो मुझे चलेगा पर उसको पनिशमेंट देने का अधिकार मैं किसी को नहीं दे सकती । उसको कितनी ही एक्टीविटी करने की मनाही थी....पर जहाँ तक मेरा बस चला, मैंने उसे सब करवाया। 
       पिछला कुछ समय फिर से हम सब के लिये नाजुक समय लेकर आया लेकिन हिम्मत न हारकर , सब्र रखते हुए संयम से काम ले तो सब ठीक होता है, यह मेरा अनुभव कहता है।
     The sky is pink हमे जीवन जीना सीखाती है, परिवार को साथ बने रहना सीखाती है......अगर परिवार के सभी सदस्य दृढ़ता से साथ हो विकट परिस्थितियों से जुझा जा सकता है.....आपस का गहरा जुड़ाव आपको विकट परिस्थितियों में हिम्मत ही नहीं देता बल्कि उबारता भी है। यह फिल्म दुख में बैठकर रोने की बजाय दुख से पार जाना या उसे खुशी में तब्दील करना सीखाती है।
        मैं नहीं जानती कि यह फिल्म सभी को पसंद आयेगी या नहीं लेकिन मेरे लिये यह , कुछ हद तक खुद को देखने जैसा अनुभव रहा।

टिप्पणियाँ

Ravindra Singh Yadav ने कहा…
एक संवेदनशील फ़िल्म की बेबाक सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुत करती पठनीय प्रस्तुति।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
आत्ममुग्धा ने कहा…
जी, बेहद शुक्रिया आपका

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