सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हार ना मानूंगी

मैं हार ना मानूंगी
जिंदगी के झौको संग चलूंगी
थपेड़े आँधियों के सहूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
गोधुली की धूल लेकर
भोर की किरणों से
नये सृजन करूँगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
मुसीबतो को गले लगाकर
झंझावतों में झूलकर
तप तप कुंदन बनूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
तुफानों से रुबरु होकर
जीवन से सबक लेकर
जंग हर एक लडूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
राह के काँटे चुनकर
फूल भले ना बिछा पाँऊ
सुकून के पल सजाऊँगी,पर
मैं हार ना मानूँगी
करता है ईश्वर प्रेम मुझे
बाल न बांका होने देना
उसका प्रेम लेकर
पार हर राह करुंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी

टिप्पणियाँ

Nitish Tiwary ने कहा…
हार नहीं मानना ही ज़िन्दगी का यथार्थ है। सुंदर प्रस्तुति।
मुसीबतो को गले लगाकर
झंझावतों में झूलकर
तप तप कुंदन बनूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी...
प्रेरणावर्धक सुन्दर लेखन हेतु साधुवाद व बधाई ।
Rohitas Ghorela ने कहा…
इश्वर जिसे प्रेम करता हो उसका क्या ही बाल बांका होगा.
उत्साह भर देने वाली रचना.
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे 
आत्ममुग्धा ने कहा…
उत्साहवर्धन के लिये आपका शुक्रिया 🙏
आत्ममुग्धा ने कहा…
शुक्रिया.... जल्द ही उपस्थित होती हूँ आपकी पोस्ट पर
Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
आत्ममुग्धा ने कहा…
आपका बेहद शुक्रिया
Onkar ने कहा…
सुन्दर रचना
मन की वीणा ने कहा…
आशा वादी का दामन थामे सार्थक सृजन।
Pammi singh'tripti' ने कहा…
साकारात्मक, सार्थक सृजन।
Kamini Sinha ने कहा…
जीवन की सच्ची सीख देती सुंदर सृजन ,सादर
Meena sharma ने कहा…
ईश्वर मुझे प्रेम करता है - यह जान लेने के बाद और किसी से प्रेम की अपेक्षा भी नहीं रह जाती। सुंदर।
आत्ममुग्धा ने कहा…
यहाँ आकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिये शुक्रिया आपका
आत्ममुग्धा ने कहा…
बिल्कुल सच......ईश्वरीय प्रेम के आगे सब तुच्छ है

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

सीख जीवन की

ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर।      दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया।       हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है।      खिलखिलाते...

पुस्तक समीक्षा

पिछले दिनों एक बहुत दिलचस्प किताब पढ़ी, जिसने न केवल सोचने पर मजबूर किया बल्कि झकझोरा भी।       किताब है प्रवासी भारतीय समाज की स्थिति पर जो डॉलर समेटने के मायाजाल में है। हालांकि जब किताब लिखी गयी थी तब से अब तक में कुछ परिवर्तन तो निसंदेह हुए है , अमेरिका में बसने का सपना आज की नयी पीढ़ी में उतना चरम पर नहीं है जितना तात्कालिन समय में था और यह एक सुखद परिवर्तन है।          पिछले दिनों मैं भी कुछ समय के लिये अमेरिका में थी शायद इसीलिये इस किताब से अधिक अच्छे से जुड़ पायी और समझ पायी। एक महीने के अपने अल्प प्रवास में हालांकि वहाँ का जीवन पूरी तरह नहीं समझ पायी पर एक ट्रेलर जरुर देख लिया। वहाँ रह रहे रिश्तेदारों, दोस्तों से मिलते हुए कुछ बातें धूंध की तरह हट गयी।      यह किताब उस दौरान मेरे साथ थी लेकिन पढ़ नहीं पायी। जब भारत लौटने का समय आया तो मैंने यह किताब निकाली और सोचा कि 16 घंटे की यात्रा के दौरान इसे पढ़ती हूँ। समय और मौका दोनो इतने सटीक थे कि मैं एक सिटींग में ही 200 पन्ने पढ़ गयी। ऐसा लग रहा...