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हार ना मानूंगी

मैं हार ना मानूंगी
जिंदगी के झौको संग चलूंगी
थपेड़े आँधियों के सहूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
गोधुली की धूल लेकर
भोर की किरणों से
नये सृजन करूँगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
मुसीबतो को गले लगाकर
झंझावतों में झूलकर
तप तप कुंदन बनूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
तुफानों से रुबरु होकर
जीवन से सबक लेकर
जंग हर एक लडूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
राह के काँटे चुनकर
फूल भले ना बिछा पाँऊ
सुकून के पल सजाऊँगी,पर
मैं हार ना मानूँगी
करता है ईश्वर प्रेम मुझे
बाल न बांका होने देना
उसका प्रेम लेकर
पार हर राह करुंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी

टिप्पणियाँ

  1. हार नहीं मानना ही ज़िन्दगी का यथार्थ है। सुंदर प्रस्तुति।

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  2. मुसीबतो को गले लगाकर
    झंझावतों में झूलकर
    तप तप कुंदन बनूंगी, पर
    मैं हार ना मानूंगी...
    प्रेरणावर्धक सुन्दर लेखन हेतु साधुवाद व बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इश्वर जिसे प्रेम करता हो उसका क्या ही बाल बांका होगा.
    उत्साह भर देने वाली रचना.
    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे 

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया.... जल्द ही उपस्थित होती हूँ आपकी पोस्ट पर

      हटाएं
  4. उत्साहवर्धन के लिये आपका शुक्रिया 🙏

    जवाब देंहटाएं

  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

    जवाब देंहटाएं
  6. आशा वादी का दामन थामे सार्थक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  7. जीवन की सच्ची सीख देती सुंदर सृजन ,सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यहाँ आकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिये शुक्रिया आपका

      हटाएं
  8. ईश्वर मुझे प्रेम करता है - यह जान लेने के बाद और किसी से प्रेम की अपेक्षा भी नहीं रह जाती। सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिल्कुल सच......ईश्वरीय प्रेम के आगे सब तुच्छ है

      हटाएं

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