साथ.....दो अक्षरों का छोटा सा शब्द। गहन मायने है इसके। कभी कभी हम किसी के साथ, जीवन भर चलते हुए भी इस शब्द के मायने नहीं समझ सकते, तो कभी कभी कोई कोई बिना मिले , बिना देखे भी हमेशा साथ महसूस होता है....जैसे की ईश्वर ।
कई लोग कहते है कि ऐसा कैसा साथ....न मिले, न देखा, न जाना...इवन कभी कभी तो बात भी नहीं होती फिर भी कोई अपना सा होता है। सोच कर देखिये....क्या आप कभी ईश्वर से मिले है, उसे देखा है, उसे स्पर्श किया है....फिर भी उसे साथ पाते है ना, अपना हर दुख उसके आगे झरते है, बिना किसी आवरण आप उसके सामने होते है, आप अपना क्रोध, गुस्सा सब ईश्वर के आगे रखते है, आप पारदर्शी हो जाते है उसके आगे ...क्यो ? क्योकि आप हर वक्त उसका साथ महसूस करते है । आपको डर नहीं होता खूद को उसके समक्ष एज इट इज रखते हुए।
बस, ऐसे ही कुछ रिश्ते भी होते है , जिनको महसूस करने की क्षमता गहन होती है । ऐसे रिश्तों में आपके मन का हर कोना शतप्रतिशत वास्तविक होता है, कोई भी बात फिल्टर नहीं होती, कोई भी कण अछुता नहीं होता, कोई दुराव नहीं होता.....ऐसे रिश्ते ईश्वरतुल्य होते है, निडर होते है.....खोने पाने से कोसो दूर होते है, अनाम होते है, निराकार होते है और शायद परिभाषाओं से दूर होते है ।
टिप्पणियाँ
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'