मैं हार ना मानूंगी
जिंदगी के झौको संग चलूंगी
थपेड़े आँधियों के सहूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
गोधुली की धूल लेकर
भोर की किरणों से
नये सृजन करूँगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
मुसीबतो को गले लगाकर
झंझावतों में झूलकर
तप तप कुंदन बनूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
तुफानों से रुबरु होकर
जीवन से सबक लेकर
जंग हर एक लडूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
राह के काँटे चुनकर
फूल भले ना बिछा पाँऊ
सुकून के पल सजाऊँगी,पर
मैं हार ना मानूँगी
करता है ईश्वर प्रेम मुझे
बाल न बांका होने देना
उसका प्रेम लेकर
पार हर राह करुंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
टिप्पणियाँ
झंझावतों में झूलकर
तप तप कुंदन बनूंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी...
प्रेरणावर्धक सुन्दर लेखन हेतु साधुवाद व बधाई ।
उत्साह भर देने वाली रचना.
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,