कितना मुश्किल होता है
किसी की सिमटी तहों को खोलना
सिलवटे निकालना
और फिर से तह कर सौंप देना
प्याज की परतों सी होती है ये, पर
प्याज की तरह नहीं खोला जाता इन्हे
एक एक परत को सहेजना पड़ता है
अंतस तक पहूँचकर
बाहर निकलते वक्त
फिर से परत दर परत को
हूबहू रखना पड़ता है
जानती हूँ ये ढ़ीठ होती है
नहीं खुलेगी आसानी से
साधक की तरह सब्र रखना होगा
लेकिन विश्वास है
खुलेगी.......
प्याज की तरह नहीं
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह....स्वतः ही
जब पायेगी ओस की बूंदों सा स्पर्श
कुछ परतें पार कर ली
कुछ अभी भी बाकी है
अंतिम तह में दबे
कुछ ग्लानि भावों को निकाल लाना है
फिर सौंप देनी है सभी परतें ज्यो की त्यो
क्योंकि हर परत पूँजी है उसकी
नहीं अधिकार किसी को भी
बेरोक टोक आने का
मैं जानती हूँ उसे
वो मेरी ही छाया है
अंश है मेरा
नहीं अनुमति देगी प्रवेश की.....
कोई और वहाँ पहूँच कर
तहस नहस करे
उसके पहले वहाँ जाना है
करीने से सब कुछ सजा कर फिर लौट आना है
और लौटना ऐसा कि
उसकी अंतिम तह सिर्फ उसकी
बस,मैं कोशिश में हूँ
हर रोज सुबह की सैर मुझे पूरे दिन के लिये शारीरिक मानसिक रूप से तरोताजा करती है। सैर के बाद हम एक भैयाजी के पास गाजर, बीट, हल्दी, आंवला ,अदरक और पोदीने का जूस पीते है, जिसकी मिक्सिंग हमारे अनुसार होती है। हम उनके सबसे पहले वाले ग्राहक होते है , कभी कभी हम इतना जल्दी पहूंच जाते है कि उन्होने सिर्फ अपना सब सामान सैट किया होता है लेकिन जूस तैयार करने में उन्हे पंद्रह मिनिट लग जाते है, जल्दबाजी में नही होती हूँ तो मैं जूस पीकर ही आती हूँ, वैसे आना भी चाहू तो वो आने नहीं देते , दो मिनिट में हो जायेगा कहकर, बहला फुसला कर पिलाकर ही भेजते है। उनकी अफरा तफरी और खुशी दोनो देखने लायक होती है। आज सुबह भी कुछ ऐसा ही था, हम जल्दी पहूंच गये और उन्होने जस्ट सब सैट ही किया था , मैं भी जल्दबाजी में थी क्योकि घर आकर शगुन का नाश्ता टीफिन दोनों बनाना था। हमने कहां कि आज तो लेट हो जायेगा आपको, हम कल आते है लेकिन भैयाजी कहाँ मानने वाले थे । उन्होने कहा कि नयी मशीन लाये है , आपको आज तो पीकर ही जाना होगा, अभी बनाकर देते है। मुझे सच में देर हो रही थी लेकिन फिर भी उनके आग्रह को मना न कर स...
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