आज टीचर्स डे है.....यानि कि शिक्षक दिवस। यूँ तो जिंदगी हमारी सबसे बड़ी शिक्षक है लेकिन मूल रुप से हम, आज का दिन हमे अक्षर ज्ञान सिखाने वाले गुरुओं को ही समर्पित करते है।
स्कूल में बिताया गया समय हमारे जीवन का एक सुनहरा समय होता है, न जाने कितनी खट्टी मिठ्ठी यादें जूड़ी है स्कूली जीवन और शिक्षकों के साथ। ये वो वक्त होता है जब आपके व्यक्तित्व को आकार मिल रहा होता है ।
मेरे पास ऐसे बहुत से किस्से है अपने शिक्षकों से जुड़े जो मेरे आज के व्यक्तित्व में एक महत्वपूर्ण भुमिका निभाते है ।मुझे याद है चौथी कक्षा में मैंने अपना पहला प्राइज जीता था स्पीच में और उस वक्त मेरे सर मुझसे ज्यादा खुश थे । उसके बाद जब उनकी अनुपस्थिति में बिना उनकी मदद के मैंने इंदिरा गाँधी की मृत्यू पर खुद से लिख और याद करके एक स्पीच दी और प्रथम आई.....तो जब उन्हे पता लगा तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा । मैं शायद नौ या दस वर्ष की थी उस वक्त ....तब न गूगल बाबा थे और न ही इडियट बॉक्स पूरे दिन किसी को श्रद्धांजलि देता था...सिर्फ 20 मिनिट की न्यूज आती थी, उसी में उनके एक भाषण की झलकियाँ देखकर मैंने अपनी स्पीच तैयार की। यह सब संभव हो पाया था....मेरे सभी शिक्षकों के अध्यापन की वजह से जिन्होने हमेशा पढ़ने से ज्यादा सीखने पर जोर दिया।
इसके अलावा एक और वाकया कॉलेज का है जो मेरे हमेशा मेरे राईट अप को एक मूव देता है । हुआ क्या था कि हम सब स्टूडेंट्स को एक ट्रिप पर जाना था और हमारी प्रिंसीपल तैयार नहीं थी.....मैं एक छोटे से कस्बे से हूँ तो उन दिनों कॉलेज ट्रिप जाना आम बात नहीं थी। फिर भी हम पाँच छ: लड़कियों ने प्रिंसिपल से बात करने की सोची और आनन फानन में मैंने एक एप्लिकेशन लिखी जिसमे ट्रिप के फायदे थोड़ा इमोशनल पुट देकर लिखे। फिर हम सब ऑफिस में गये और एप्लिकेशन प्रिंसीपल को दी....वे एप्लिकेशन पढ़ रही थी और हम उनके हाव भाव। पूरा पढ़ने के बाद वे बोली कि एप्लिकेशन किसने लिखी और मुझे तो जैसे काटो तो खून नहीं। मैने डरते हुए कहा कि मैंने लिखी। तब वो मुस्कुराते हुए बोली कि गजब का वाक्य विन्यास है । हालांकि हम उस वक्त ट्रिप पर तो नहीं जा सके लेकिन उनका बोला ये वाक्य आज भी मेरे पेन को लंबी दूरी तक ले जाता है ।
थैक्स टू ऑल माय टीचर 🙏🙏
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