कहने को तो वह
कोमलांगिनी है
नाजुक सी देह की स्वामिनी है
भावों की अश्रु धार है
क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है
लेकिन सोचा है कभी
कैसे कर जाती है वो
प्यार, स्नेह, दुलार, कर्तव्यनिष्ठा
मान सम्मान, प्रतिष्ठा,
संघर्ष, जुझारूता, आत्मनिष्ठा
दुख, दर्द की पराकाष्ठा
कैसे सह जाती है वो
हर वो बात
जो पुरुषों तुम्हारे बस की नहीं ।
ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर। दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया। हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है। खिलखिलाते...
टिप्पणियाँ
क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है
शानदार लेखन
सतसैया के दोहे जैसी भावार्थ समेटे।
अप्रतिम।
आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है