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कोमलांगिनी

कहने को तो वह
कोमलांगिनी है
नाजुक सी देह की स्वामिनी है
भावों की अश्रु धार है
क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है
लेकिन सोचा है कभी
कैसे कर जाती है वो
प्यार, स्नेह, दुलार, कर्तव्यनिष्ठा
मान सम्मान, प्रतिष्ठा,
संघर्ष, जुझारूता, आत्मनिष्ठा
दुख, दर्द की पराकाष्ठा
कैसे सह जाती है वो
हर वो बात
जो पुरुषों तुम्हारे बस की नहीं ।

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है
शानदार लेखन
मन की वीणा ने कहा…
छोटे में बहुत कुछ कहती रचना।
सतसैया के दोहे जैसी भावार्थ समेटे।
अप्रतिम।
Kamini Sinha ने कहा…
बहुत सुंदर भावो से सजी रचना ...
आत्ममुग्धा ने कहा…
आपका बेहद शुक्रिया यशोदाजी
आत्ममुग्धा ने कहा…
सराहना के लिये धन्यवाद
आत्ममुग्धा ने कहा…
आपके इतने सुंदर शब्दों के लिये आभार आपका
आत्ममुग्धा ने कहा…
आभार आपका मुझे प्रोत्साहन देने के लिये
Onkar ने कहा…
सार्थक रचना
Meena Bhardwaj ने कहा…
बेहद उम्दा भावों का सृजन ।
प्रभावशाली प्रस्तुति
आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है

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