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कोमलांगिनी

कहने को तो वह
कोमलांगिनी है
नाजुक सी देह की स्वामिनी है
भावों की अश्रु धार है
क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है
लेकिन सोचा है कभी
कैसे कर जाती है वो
प्यार, स्नेह, दुलार, कर्तव्यनिष्ठा
मान सम्मान, प्रतिष्ठा,
संघर्ष, जुझारूता, आत्मनिष्ठा
दुख, दर्द की पराकाष्ठा
कैसे सह जाती है वो
हर वो बात
जो पुरुषों तुम्हारे बस की नहीं ।

टिप्पणियाँ

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. क्षतविक्षत ह्रदय की रफु की हुई कामायिनी है
    शानदार लेखन

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  4. छोटे में बहुत कुछ कहती रचना।
    सतसैया के दोहे जैसी भावार्थ समेटे।
    अप्रतिम।

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  5. बहुत सुंदर भावो से सजी रचना ...

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  6. बेहद उम्दा भावों का सृजन ।

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  7. प्रभावशाली प्रस्तुति
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है

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