नहीं आसान होता किसी को भुल जाना
रोजमर्रा में सुरज के साथ जलते हुए
पृथ्वी के साथ परिक्रमा करते हुए
चाँद को सिरहाने रखते हुए
रातों को टुटते तारों को देख
उदास होते हुए
नहीं आसान होता किसी को भुल जाना
सबके बीच अकेलेपन से जूझते हुए
कुछ धूँधली सी यादों को जीते हुए
नफरत के कंकर को बीनते हुए
विष में से दो बूंद अमृत की सहेजते हुए
कटु शब्दों को स्मृतियों से हटाते हुए
नहीं आसान होता किसी को भुल जाना
असंभव को संभव से गुजरकर
फिर असंभव पर आकर देखते हुए
हवा के बिना साँस लेते हुए
आधार बिना चलते हुए
बिना आसमाँ उड़ान का सपना लिये हुए
आँसू बिना बिलखकर रोते हुए
उदास सी हँसी चेहरे पर सजाते हुए
नही आसान होता किसी को भुल जाना
चंद लम्हों के साथ जीते हुए
जिंदगी से बिछड़ते हुए
ऊल जुलूल सोचते हुए
बेवजह तकरीर में उलझते हुए
नियती को बदलते हूए
मोह के धागों की उलझन को सुलझाते हुए
कहाँ आसान होता है किसी को भुल जाना
पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा चिनार और पिता
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