मैं पुकारती हूँ तुम्हे
पर वो पुकारना शुन्य में विलिन हो जाता है
जब भी दर्द में होती हूँ
किसी को न दिखने वाले मेरे आँसू
छलकना चाहते है तेरे आगोश में
पर वो जज्ब नहीं हो पाते तेरे आँचल में
और भटकते रहते है मुझमें ही
तलाशते रहते है एक कोना अंधेरा सा
एक काँधा अपना सा,
लेकिन बेबस हो बह जाते है अंदर की ओर ही
सिमट जाते है मन के एक रिक्त कोने में
कभी कभी वो कोना स्पर्श चाहता है तुम्हारा
नमी चाहता है अपनेपन की
बारिश चाहता है प्यार की
धुप चाहता है खिली खिली सी
पर जानती हूँ मैं....तुम नहीं हो यहाँ
रिक्त ही रहेगा वो कोना अब हमेशा
अब मेरे सिर पर नहीं है वो दो हाथ
जो मुझे बेफिक्री का अहसास कराते थे
जबसे तुम गई हो ..... माँ
पिछले पाँच सालों में भुरभुरी सी हो गई हूँ
बिना जमीं का एक पौधा रह गई हूँ
पर माँ मैं बरगद बनना चाहती हूँ
अपनी जड़ों को भुरभुरी सी मिट्टी में
गहरे तक फैला देना चाहती हूँ मजबूती से
ताकि कोई भी तुफान
अब मुझे हिला न सके
तेरा न होना भी कभी कभी
मुझमे रक्त संचार सा करता है
अब तेरे सच की राह मुझे आसान लगती है
अक्सर तू मुझ में समाहित हुई सी लगती है
ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर। दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया। हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है। खिलखिलाते...
टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर रचना ... दिल को छूती हुयी ...