क्या है प्यार ?
सोशियल मीडिया पर फैला मायाजाल
या
नर्म मखमली शब्दों का जामा....
चंद मुलाकातों की मोहब्बत
या
एक जुनून अंधा....
हवा में उड़ती ऊँची पतंग
या
कच्चे धागे सी उलझती बहस.....
चमकीली पन्नी में सिमटे उपहार
या
उन उपहारों की कीमत.....
एक प्यारी सी दोस्ती
या
बेनाम रिश्ता जज्बातों से भरा....
कशमकश इसे बनाये रखने की
या
मुक्त कर हवा में उड़ा देने की....
क्या है प्यार ?
अवस्था अधर में झूलते रहने की
या
खिंच कर तार अपने एक जगह अटक जाने की...
हर बार बताते रहना,दिखाते रहना
या
चुपचाप मौन होकर जी जाना....
देह से जोड़कर रखना
या
देह से परे होकर महसूसना....
टुटना...बिखरना...और गिडगिडाना
या
जुड़ना...निखरना और रंगों को भरना
न जाने क्या है प्यार
लेकिन जो सहज सरल हो
वही है प्यार
जो शर्तों से परे हो
जो बाध्य न हो
जो पल दो पल का आकर्षण न हो
जो रंग रुप में न हो
जो साँवली रंगत में झलकता हो
जो ऊँचा तो हो...पर कद की ऊँचाई न देखता हो
जो बंधन में न होकर भी प्रेम से बंधा हो
जो आजाद तो हो पर आजाद होना न चाहे
जो प्रेम के बंधन को जी जाये
जो स्वतंत्र होकर छटपटाये
जो बंधन में उन्मुक्त हो जाये
जो एक झलक से तृप्त हो जाये
जो स्वभाव हो
जो बस एक भाव हो जीने का
किसी को पा जाने का
जो मजबूत डोर से जुड़ी पतंग सा हो
जो उड़े आसमाँ में नये आयामों तक
लेकिन शायद
इन परीधियों ...इन मापदंडो पर
प्यार होता नहीं आजकल
नहीं पता...क्या है प्यार ?
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है
टिप्पणियाँ
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है सुनती है कहा करती है
ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो।
सादर...