पहला दिन
दिसम्बर तीन की अलसुबह...... हम दोनो घर से निकल गये एअरपोर्ट के लिये। छ: बजे की फ्लाइट थी और 8:50 पर हम देहरादून पहुँचने वाले थे।
मैं बड़ी खुश थी अपनी इस यायावरी को लेकर, क्योकि पुरी ट्रिप मैंने प्लान की थी और पतिदेव ने इसे स्पोंसर किया था, हालांकि यह ट्रिप किसी और के साथ किन्हीं और वजहों से बनी थी।
हाँ तो...... हम एअरपोर्ट पहुँच गये, भीड़ बहुत थी, हमने फटाफट बोर्डिंग पास लिया और लगेज चैक इन करवाने लाइन में लग गये। हमारा समान जैसे ही बैल्ट पर रखा गया, वजन ज्यादा होने की चेतावनी मिली। हमने समान वापस लिया और कैमरा, बैकपैक, पर्स और कुछ गरम कपड़े हाथ में लिये और बाकी समान को कार्गो में डाला। यह एक अलग ही अनुभव था, भीड़ के बीच हम समान खोलकर बैठे थे और हड़बड़ी में मै गड़बड़ कर रही थी जो कि अक्सर मुझसे होती है........ऐसे में कुशल पति का होना वाकई राहत होता है 😍
खैर......सुबह नौ बजे के करीब हम देहरादून एअरपोर्ट पर थे और हमारा टैक्सी ड्राइवर हमारा वहाँ इंतजार कर रहा था। देहरादून में तापमान 10 डिग्री था जो मेरे लिये बेहद ठंडा था और मैंने स्वयं को एक पशमीना में लपेट लिया। ड्राइवर ने अपना परिचय दिया, वो एक पहाड़ी लड़का था, उसका नाम विपिन था और अगले 6 दिनों तक वही हमारा सारथी था।
हमारी गाड़ी स्विफ्ट डिजायर थी, हम दोनो पीछे की सीट पर बैठ गये। मैंने पूछा कि कितना वक्त लगेगा तो सुशील ने कहा, चार बजे तक आराम से पहुँच जायेंगे।
हमारा पहला पड़ाव जोशीमठ था, यहाँ के होटल में हमारी दो दिन की बुकिंग थी और जोशीमठ देहरादून से 280 किलोमीटर था जो आसानी से 5/6 घंटों में कवर किया जा सकता था, पर..... विपिन ने हमारा भ्रम तोड़ दिया, उसने कहा कि हमे 8 घंटे कम से कम लगेगे और सड़क निर्माण कार्य जोरो पर है तो 10 घंटे लगेंगे। पतिदेव ने शायद उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया...... वे किलोमीटर के आंकड़ों को गिनकर चल रहे थे।
हमने सड़क मापनी शुरु की, रास्ते की दुश्वारियाँ रुबरु होने लगी। काम के चलते कितनी बार हमे रुकना पड़ा और घुमावदार रास्ते गाड़ी की लय को बार बार तोड़ रही थी। उबड़ खाबड़ रास्ते बार बार गियर बदल रहे थे और किलोमीटर बहुत धीमे कम हो रहे थे। दोपहर को दो बजे एक अच्छा ढ़ाबा देखकर हम खाना खाने रुके। बाहर मौसम सुहावना था । हमने खाने का ओर्डर दिया, ओर्डर लेने वाली दो पहाड़ी लड़किया थी, जो खुबसुरत तो थी ही..... पर उनकी बोली की मिठास जैसे कानों में रस घोल रही थी।
खाना बेहद स्वादिष्ट था और अब हम फिर सड़क पर दौड़ लगाने लगे। सुशील इरिटेट होने लगते थे जब देखते कि किलोमीटर कम ही न हो रहे। और मैं....... मैं तो बहुत खुश थी क्योकि ओली ट्रिप मैंने बड़े दिल से प्लान की थी 😍
सुशील गोल गोल घुमावदार घाट वाले रास्तों से चिढ़कर आगे की सीट पर बैठ गये और मैं तपाक से पीछे की सीट पर लेट गयी...... अब ये गोल गोल रास्ते जैसे मुझे झुलाने लगे और मेरी आँख लग भी गयी थी।
आखिरकार 7 बजे के थोड़ा पहले हम जोशीमठ के हमारे होटल दि स्लीपिंग ब्यूटी में पहुँच गये। होटल के मालिक सूरज ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया । मेरे दाँत किटकिटा रहे थे..... ठंड हाड़ कंपा देने वाली थी। सूरज ने बताया कि तापमान माइनस दो है, यह सुनते ही न जाने क्यों दाँत और तेजी से किटकिटाने लगे 😂😂
गर्म गर्म चाय से मामूली सी राहत मिली और खाने का ओर्डर कर हम अपने कमरे में चले गये। हमने बड़ा कमरा लिया और कपड़ों की और दो परत चढ़ाकर रेस्टोरेन्ट में आ गये। गर्म गर्म सूप और एक एक कर आते फुलकों ने घर जैसी गरमाहट भर दी...... मैंने एक्सट्रा घी की फरमाईश की। अगली चपाती घी से तर बतर थी और मैं खुशी से।
कमरे में लगा हीटर पूरे प्रयास कर रहा था, कमरे को गरम करने का...... पर वो नाकाम रहा.... हम तुरंत अपने बिस्तर में घूस गये और कब आँख लग गयी, पता ही न चला।
टू बी कंटीन्युड.........
टिप्पणियाँ