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पहाड़ बुलाते है -2

दूसरा दिन

रात को जल्दी सो जाने से सुबह जल्दी ही आँख खुल गयी, वैसे भी मैं जल्दी उठने वालो में से हूँ।  6 बज चुके थे, मैंने तुरंत उठकर खिड़की का पर्दा हटाया क्योकि रात को कुछ दिखाई न दे रहा था।  पर्दा हटाने ही जैसे मैं झूम गयी,  मेरे प्रिय पहाड़ जैसे मुझे खिड़की से गुडमोरनिंग कर रहे थे। वे एकदम नजदीक थे और विशालकाय थे।  मेरी नजरे उनसे हट ही नहीं रही थी कि सुशील ने याद दिलाया कि हमे 9 बजे निकल जाना है आस पास की जगह देखने।
     आज के कार्यक्रम में शामिल था गोरसोन बुगयाल और इसे लेकर ही मैं सबसे ज्यादा उत्साहित थी, यह एक 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग थी। यहाँ तक जाने के लिये हमे गंडोला  में बैठना था जो कि अपने आप में एक रोचक अनुभव होने वाला था।
            ये गंडोला राइड जोशीमठ से ओली तक जाती है और ये एशिया की दूसरी सबसे लंबी दूरी तय करने वाली राइड है।  यूँ तो जोशीमठ और ओली के बीच की दूरी 15 किलोमीटर है पर गंडोला इसे साढ़े चार किलोमीटर में ही पुरी देता है और करीबन 15/20 मिनिट में हम ओली पहुँच जाते हैं। उसी गंडोला से हमे वापस आना होता है।
       हम दोनो आनन फानन तैयार होकर नाश्ता करने पहुँच गये।  सूरज ने मुस्कुरा कर स्वागत किया।  नाश्ते में गरमागरम पोहे,  आलू पराठे, टोस्ट और चाय हमारा इंतजार कर रहे थे। भरपेट नाश्ता करने के बाद हम बाहर फोटो लेने लगे।  सूरज भी वही थे, मैंने उनसे गोरसोन बुगयाल के लिये पुछा तो उन्होने कहा कि आपको वहाँ गाइड मिल जायेगा। 
         हमारे ड्राइवर ने हमे गंडोला राइड तक छोड़ा।  हमने टिकिट ली जो 750 प्रति व्यक्ति आना जाना थी। यह करीबन 20 से 25 यात्रीयों को लेकर जाती है।  हम 16 लोग थे। गंडोला में बैठने के लिये सीट नहीं थी, आपको खड़े होकर नजारों को देखना होता है।  जब यह जोशीमठ से ओली की ओर जाना शुरू करती है,  उसी वक्त दूसरा गंडोला ओली से जोशीमठ की ओर उतरना शुरु करता है और दोनो गंडोला एक ही रोप से सुचारु रुप से कार्य करते है।  गंडोला में एक गाइड हमारे साथ था जो हमे बता रहा था कि इस गंडोला को बनने मे  11 साल लगे थे और ऊपर की ओर जाकर हमे  हिमालय दिखता है । हम सब बाहर के नजारे देखने लगे । कैमरों के क्लिक्स की आवाजें आने लगी।  पहले अल्पाईन ट्री और एप्पल के पेड़ दिखाई दिये, फिर घना जंगल आया और जंगल के बीच से गुजरती एक सड़क मुझे दिखाई दी,  जो वाकई शानदार थी।  थोड़ी ही देर में पहाड़ दिखने लगे...... गाइड ने हमे पहाडों की चोटियों के बारे में  बताया।  जब हम लास्ट स्टेशन पहूँचे तो हमसे हमारे लौटने का वक्त पूछा गया और गंडोला के वापस जाने का समय हमे बताया गया। अंतिम गंडोला की वापसी का समय था 4:20 का और हम सबने तय किया कि हम चार बजे तक आ जायेंगे। 
        हम बाहर आये तो वहाँ दो तीन गाइड खड़े थे।  मैंने कहा कि गोरसोन बुगयाल जाना है।  गाइड ने बताया कि हजार रुपये चार्ज होगा, जिसमे आपको सब पीक दिखायेंगे और रास्ते में एक मंदिर भी दिखाया जायेगा।  मैंने हमारे साथ आये 16 लोगो से पूछा कि क्या वे हमारे साथ चलना चाहेंगे। उनमे से कुछ आँटीज् थी,  जिन्होने असमर्थता जतायी पहाड़ चढ़ने में। आखिरकार हम नौ लोग तैयार हो गये ट्रैकिंग के लिये और हमने गाइड को कहा कि प्रति व्यक्ति सौ रुपये लगा लो।  गाइड तैयार हो गया और उसने हमे स्टिक लेने कहा कि इससे चलने में आसानी रहेगी और उसका किराया पचास रुपये प्रति स्टिक था। 
          अब गाइड को मिलाकर हम दस लोग थे।  दो हम पति पत्नी, दो लड़के , एक कपल और तीन अन्य लोग एक ही परिवार के। 
            हम लोगो ने चलना शुरु किया, मैं उत्साह में सबसे आगे चली जा रही थी, हालांकि साँस फूलने लगी थी। सबसे पहले हम जंगल के रास्ते में थे, हम सब बात करते, हँसी मजाक करते आगे जा रहे थे।  बातों बातों में एक दूसरे का परिचय लिया।  कपल को मैने पूछा कि तुम न्यूली मैरिड हो, लड़के ने बड़ी सहजता से जवाब दिया कि नहीं, ये मेरी फियोंसी है और फरवरी में हमारी शादी है।  मैंने हँसते हुए कहा कि ये नया ट्रैंड है क्या शादी से पहले हनीमून का और हम सब ठठाकर हँस दिये। दूसरे दो लड़के जो थे वो जिस तरह की हिंदी बोल रहे थे, उससे मुझे अंदाजा हो गया था कि वो शायद बंगाली हो।  मैंने उनसे पुछा कि तुम लोग कहाँ से हो,  वो दोनो बोले कि हम बंगाली है और पुलिस सेवा में है......मैंने हँसते हुए कहा कि मुझे लगा ही था।  फिर सबने पुछा सर, मैम आप लोग कहाँ से हो..... सुशील ने कहा कि हम मुम्बई से है। अब सब लोग अपने ओली आने का कारण बता रहे थे, लेकिन जैसे ही हमने बताया कि दोनो बच्चे भी बाहर गये थे तो हमने भी प्लान कर लिया...... अब वो लोग आश्चर्य से पूछे कि आपके बच्चे कितने बड़े है और जब बताया कि वे 19 और 21 के है तो वो लोग बोले कि सैल्यूट यार, आप लोग बिल्कुल नहीं लगते। सुशील ज्यादा ही उत्साहित हो गये और बोले कि हम हमारी शादी की चौबीसवीं सालगिरह मनाने यहाँ आये है.......अंगेज्ड कपल ने पुछा कि मैम आपसे कितनी छोटी है और जब उन्हे पता लगा कि मैं 43 हूँ तो वे बोले मैम आपको मानना पड़ेगा आपकी फिटनैस के लिये।
     बाते करते करते मंदिर आ गया, हम सबने दर्शन किये, पिक क्लिक्स की और आगे बढ़े...... अब जंगल पीछे रह गया और समतल पठार या उतार चढ़ाव जैसी जगह आ गयी।  हाँ,  मैं आपको बताना भूल गयी कि बुगयाल का मतलब होता है चरागाह।
          हम लोग आधे रास्ते पहुँच गये, तभी सुशील ने कहाँ कि मुझे चक्कर जैसा लग रहा है........ मैं चिन्तित हो गयी और रास्ते के ही एक पत्थर पर उन्हे बैठने कहा....... मैंने उन्हे पानी पिलाया। थोड़ी देर बाद वो बोले कि अब मैं ठीक हूँ..... चल, चले।  मैंने कहा कि नहीं, आप यही रहे क्योकि मुझे उनके वर्टिगो को लेकर थोड़ा तनाव था। मैंने कहा कि आप बैठे मै टॉप  तक जाकर आती हूँ, उनके पास दो और लोग भी बैठ गये जो कि दिल्ली से थे और उनके साथ की महिला हमारे साथ हो गई।  अब गाइड को मिला कर हम सात जने थे।  मैं फिर से सबसे आगे हो गयी और अपने जल्दबाज स्वभाव के चलते फिर एक गलती ये कर दी कि अपनी स्टिक अपने पति के पास ही भूल गयी।  मुझे इस बात का अहसास भी नहीं था कि मेरी स्टिक मेरे पास नहीं थी...... मुझे बस ऐसा लग रहा था कि पहाड़ मुझे बुला रहे है और मैं उनके मोहपाश से बंधी खिंची चली जा रही थी।  प्रकृति मुझे उर्जा दे रही थी।  साँस फूल रही थी पर थकान बिल्कुल नहीं थी।  मेरे साथ वाले सब पीछे रह गये...... मैं एकदम अकेली थी पहाडों के बीच और ये क्षण अविस्मरणीय था मेरे लिये कि तभी गाइड पीछे से बोला मैडम राइट को चलना है। 
       मैं थोड़ा धीरे हो गयी कि दोनो बंगाली लड़के चलते हुए मेरे बराबर आ गये।  उनमे से एक बोला मैम आप क्या योगा जिम करती हो?  आप इस उम्र में भी इतनी फिट कैसे?  आपमे इतनी एनर्जी कैसे?
वो दोनो पुलिस में थे, इसलिये फिटनैस वाली बात मुझे कॉम्पलीमैंट लगी और मैंने मुस्कुराकर कहा कि हल्की फुल्की एक्सरसाईज और मोरनिंग वॉक मेरी दिनचर्या का हिस्सा है। वो बोले कि मानना पड़ेगा आपको और मैंने हँसते हुए अपनी कॉलर ऊपर की।
       गाइड बोला कि अब आप यहाँ फोटोग्राफी कर लो।  वाकई वो पूरा 360 व्यू था। कुछ अलग तरह के क्लिक्स मैं चाहती थी पर सुशील तो बहुत नीचे रह गये थे।  मैंने बेझिझक उन दोनो लड़को को कहा कि सुनो, मेरी पिक लोगे।  पता था, वो मना नहीं करेंगे....... लेकिन मैंने कहा कि  मैं जम्प करूँगी तब तुम क्लिक करना और वो दोनो जोर से हँसते हुए बोले...... मैडम तो मैडम है। और फिर हम सब काउंट कर रहे थे वन टू थ्री....... और थ्री पर मेरा जम्प...... तब तक नोयेडा वाला कपल भी आ गया ...... फिर मेरी बहुत शानदार पिक्स उन लोगो ने क्लिक की। 
       फोटोग्राफ लेने के बाद गाइड बोला कि मुझे यही तक लाने का पास मिला है,  मैं आगे नहीं जा सकता।  हम छ लोगो ने आपस में एक दूसरे को देखा और बंगाली लड़के बोले, मैम चले?  मैंने अंगूठा दिखाया और आगे बढ़ने लगे..... गाइड बोला आप अपने रिस्क पर जा रहे हो, मैं यही बैठकर आपका इंतजार करता हूँ।  दूसरा जो लड़का था उसे अपनी फियोंसी की चिंता थी कि वो चढ़ पायेगी कि नहीं........ मैंने उसे मोटिवेट किया और हम चलने लगे और इस तरह हर एक पहाड़ के सामने हम रुकते और फिर कहते,  चले?  और ऐसे करते करते हम बहुत ऊपर आ गये, गाइड भी धीरे धीरे ओझल हो गया । अब बिना स्टिक मुझे दिक्कत होने लगी लेकिन फिर भी पहाड़ जैसे बुलाये जा रहे थे..... हम सब ऊपर जाकर बैठ गये..... मैंने पिक लेना बंद कर दिया।  मेरे मन में एक असीम शांति थी, एक स्थिरता थी।  मैं पहाडों के साथ खुद को कनेक्ट महसूस कर रही थी।  एकटक उन्हे निहारे जा रही थी और उनसे होती हुई हवा भी जैसे मुझे सहला रही थी। प्रकृति मुझे प्यार कर रही थी और मैं अभिभूत थी उस स्पर्श से।  मेरी तंद्रा भंग हुई जब साथ आई लड़की ने वापस नीचे चलने को कहा।  नीचे उतरना मेरे लिये हमेशा दुखद होता है......बिना स्टिक संभव भी न होता शायद  कि बंगाली लड़के ने अपनी स्टिक मुझे भी।  मैं जैसे जैसे नीचे उतरती जा रही थी.......वैसे वैसे मेरा आत्मिक कनेक्शन पहाड़ों से हटता जा रहा था।  बार बार पति का ख्याल आ रहा था कि उन्हे वर्टिगो नहीं हो जाये।  मैं बड़ी तेजी से नीचे उतरी।  उन्हे देखा, वे एकदम आराम से थे  और मेरे खुश चेहरे और मेरे जज्बे को देखकर मेरी पीठ थपथपायी।
     अब हम सब वापस नीचे की ओर चल रहे थे..... मैंने उन सब को धन्यवाद दिया कि आज आप लोग नहीं होते तो शायद मैं इतने ऊपर तक नहीं जा सकती थी।आते वक्त रास्ते में हम लोगो ने बर्फ पर स्कीईंग करते हुए फोटो खिचवाई। 
          अब हम केबल कार स्टेशन पर आये । वहाँ पर ठंड से बचने के लिये लोगो ने अलाव जलाया हुआ था, हम सब उसके चारो तरफ बैठ गये और चाय के साथ गरमागरम पकौड़ों का आनंद लिया।  अगली केबल जाने में एक घंटा का समय था और हम यूँ ही बातें करते हुए समय व्यतीत कर रहे थे। मैं पहाड़ों की ओर मुँह करके बैठ गयी और जैसे उनसे बतियाने लगी, वो मेरे एकदम नजदीक थे और मैं जैसे स्वयं का आत्ममंथन कर रही थी उनके समक्ष। मैं उस वक्त एकदम रिक्त सी थी...... ना आसक्त किसी पर और ना ही विरक्त..... ना कोई भावना ना दुर्भावना......शायद ऐसे जैसे कोई शिशु होता है और बिल्कुल वैसा ही कौतूहल लेकर मैं उन्हे देखे जा रही थी।  वे खड़े थे शान से, गुरूर से एकदम तटस्थ होकर....... उनसे टकराने वाली हवा भी उनकी तटस्थता को भंग नहीं कर पा रही थी, शायद समाधिस्थ होना इसे ही कहते।  उस वक्त मैं खुद भी समाधिस्थ होना चाहती थी कि हमारी केबल कार आ गयी और हम जोशीमठ के लिये चल दिये। 
       गंडोला से उतरकर हम पार्किंग में आये।  हमारा ड्राइवर हमारा इंतजार कर रहा था क्योकि हमने उसे आने के पहले फोन कर दिया था।  अब हम देखने जा रहे थे नृसिंह मंदिर।  जब भगवान बद्रीनाथ के कपाट छ: महीनों के लिये बंद होते है तब उनकी डोली छ: महीनों के लिये यही लाई जाती है और यही उसकी विधिवत पूजा होती है। 
       वहाँ से दर्शन कर हम हमारे होटल में आ गये।  सूरज ने हमसे हमारा अनुभव पुछा और हमने कहा कि आज का दिन बढ़िया रहा।  हमने कहा कि हम आठ बजे तक खाना खाने आयेंगे। 
       कमरे में थोड़ा आराम करके हम खाना खाने गये।  गरमागरम सूप ने जैसे हमे राहत दी। एक एक आते घी से तर फुलकों ने जैसे मेरा मन तृप्त कर दिया।  हमने हल्दी वाला दूध कमरे में लाने का ओर्डर दिया और अपने रूम में आ गये।  हीटर बेचारा अभी भी प्रयास कर रहा था कमरे को गरम करने का लेकिन नाकाम ही रहा। हल्दी वाला दूध थोड़ी गरमाहट दे गया और जल्दी ही हम नींद के आगोश में थे। 

क्रमश:

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