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प्रार्थनाएं

इन दिनों टीवी पर दिखाये जा रहे और व्हाट्सएप पर वायरल हो रहे विडियों को देख रही हूँ, जिनमें एक जन सैलाब उमड़ता दिखाया जा रहा है। इस जन सैलाब में कुछ छोटे बच्चें है जो खेलते कुदते चले जा रहे है , कुछ इतने छोटे है जो किलक रहे है अपनी माँओं की गोद में, कुछ नवविवाहित से पति पत्नी है जो नयी दुनिया बसाने शायद शहर आये थे,अब सब समेट फिर से गाँव जा रहे है, कुछ अधेड़ से है जो बूरी तरह से ध्वंस दिख रहे है और भागे जा रहे है भरे पूरे परिवार को लेकर, कुछ नौजवान से है जिनके सिर पर बोझे है, कंधों पर भी सामान है, निराश से है। ये सारा जन सैलाब आज उसी पगडण्डी की ओर जा रहा है जिस पगडण्डी से होते हुए ये इस शहर वाली सड़क पर आ गये थे। एक विडियों में इन लोगों से पुछा गया कि पैदल कब तक चलोगे तो वे कहते है कि गूगल मैप बता रहा है कि छ: दिन में अपने गाँव पहूँच जायेंगे । मुझे उसका जवाब निशब्द कर गया...न जाने इन्हे कितने कितने किलोमीटर तक जाना है, साथ में बुजुर्ग है, महिलाएं है, बच्चें है ।       लॉकडाउन के इस वक्त में इतनी भीड़ देखकर हम सभी अपने घरों में बैठे लोग चिंतित है कि ऐसे हम कैसे कोरोना को भग...

अमृता और इमरोज़

ऐसा नहीं है कि वो कही गयी बातों को सच मान बैठती है, खासतौर पर प्रशंसा में कही गयी बातें। वो जमीनी हकिकत को जानती है लेकिन उसकी कल्पनाओं का संसार इतना बड़ा है कि वो एक बात कि उंगली थाम न जाने कहाँ कहाँ विचरण कर आती है। वो सच झूठ की कसौटी में नहीं उलझती, कहे गये शब्दों में भी नहीं उलझती और ना ही किसी शब्द पर आँख मूंदकर विश्वास करती है। उसकी अपनी कसौटियां है, इसीलिये वो आत्ममुग्धा है । वो नहीं जानती कि ये घमंड है या ऐसा कुछ जो किसी का नूर बन जाता है लेकिन कोई है जो इसे घमंड बताता है। वो हर शब्द से अर्थ निकालती है....गहन विश्लेषण करती है। उसकी कल्पनाओं का यह संसार कलात्मकता का एक मेला है जिसे रचती है वो अपने ही रंगों, अर्थों और बातों से। अपनी ही बातें उसे कभी कभी आत्मज्ञान की तरह लगती है। उसकी अपनी अनुभूतियाँ उसे विभोर करती है। वो हर बात में अनुभूति को जीती है।        आज जब किसी ने कहा कि "तुम अमृता भी हो और इमरोज भी" तो वो मुस्कुरा उठी, क्योकि वो कभी कभी खूद को ही कहती रही है कि "मैं इमरोज़ बनना पसंद करूँगी"। उसे इमरोज़ बहुत पसंद है। हजारों कारण है उसके पास उसको पसंद करने...

इक्कीस दिन

मैं आभारी हूँ आपकी आभारी हूँ आपके लिये निर्णयों की आप पर विश्वास हमेशा से रहा है अब ये अधिक सुदृढ़ हुआ है असंभव सा जो दिखता था आपने उसे संभव कर दिखाया दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इतना बड़ा जन सैलाब उसे थामना उसे समेटना कतई आसान न था बल्कि सोचना भी मुश्किल था आपने बड़ी सूझबूझ से  इक्कीस दिनों का चैलेंज सामने रखा न जाने ये 21 दिन  कितने भारतीयों की आदत बदल देगा कहते है ना कि एक नयी आदत परिपक्व होने में 21 दिन लेती है  तो आप लहर लाये है बदलाव की देश को बचाने के ये इक्कीस दिन वाकई इतिहास में लिखे जायेंगे  आपके इस फैसले से आपके व्यक्तित्व की दृढ़ता परिलक्षित होती है नमन है, नतमस्तक है पूरा देश आपके आगे इस वैश्विक महामारी के संकटकाल में आपका यूँ निर्णय लेना  एक बहुत बड़ी बात है पूरे  देश को लॉकडाउन करना ऐतिहासिक है सही वक्त पर सही निर्णय  मैं दिल से आभारी हूँ पुरा देश आभारी है  आपकी जनता आपके साथ है विकसीत देशों के पास  बेहतरीन चिकित्सीय टीम और संसाधन है लेकिन हमारे पास आप है  शुक्रिया आपका  आपके भाषण के बाद मैंने अपने बेटे को यूएस में फोन लगा...

बस दो हफ्ते

महामारी के मायने हम सभी समझते है तथाकथित समझदार लोग जो है हम। पिछले कुछ दिनों से स्कुल ,कॉलेज, मॉल, थियेटर सब बंद है । इस बंद के क्या मायने है....यही कि हम लोग एक साथ एक जगह भीड़ के रुप में इकठ्ठा न हो, फिर भी हममे से ही कुछ लोग इकठ्ठे हो रहे है। कभी थोड़ी देर टहलने के बहाने, वर्कआउट के बहाने, राशन लाने के बहाने। बड़े बजूर्गों का घर में दम घूट रहा है । बाहर हैंगआउट कर चिल्ल करने वाली नयी पीढ़ी हाथ में सैनिटाईजर लगा कर इसे हल्के में ले रही है ।       हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी ने जनता कर्फ्यू का आवहान किया जिसे शत प्रतिशत सफलता मिल रही है और लोग पूरे मनोयोग से साथ दे रहे है और इंतजार कर रहे है पाँच बजे का । निसंदेह मैं भी कर रही हूँ.....मैंने जब विडियों में इटलीवासीयों का यह जज्बा देखा तो उस वक्त भी विभोरता में मेरी आँखे नम पड़ गयी थी। आज शाम जब हम उन विभोर क्षणों को साथ मिलकर जीयेंगे तो वो अलग ही आनंददायक अनुभूति होगी। एक सकारात्मकता पूरे ब्रह्मांड में छा जायेगी । इस सकारात्मकता को हमे कम से कम दो हफ्तों तक बनाये रखना है । हमे उत्सव नहीं मनाना है....ना ही हमे जंग जीतने वाल...

सुबह सुबह

बड़ी खूबसूरत सुबह !  सुबह के 8:50 हो चुके है, सुरज धीमे धीमे से चढ़ा जा रहा है। मेरे ड्रॉईंग रुम में शांति से धूप पसरी पड़ी है। खिड़कियां आज बेखौफ खुली है सभी कमरों की, क्योकि  होर्न और आवाजाही का शोरगुल नहीं है । हाँ....पक्षीयों का कलरव लागातार बना हुआ है । पंखें की आवाज भी साफ सुन रही हूँ। पड़ौस की बिल्डिंग में शायद कोई पूजा कर रहा है, उस पूजाघर से आती घंटी की आवाज सुन पा रही हूँ । कूकर की सीटी तो खैर रोज ही लगभग हर घर से सुनने मिलती है पर आज ये थोड़े विलम्ब से बज रही है। अब मैं कह दूँ कि दाल के तड़के की खुशबू मेरी खिड़की से आ रही है तो अतिश्योक्ति होगी, क्योकि ये मुम्बई है जनाब। ये अलसुबह अपने काम की ओर भागती है पर अब जबकि काम घर पर रहकर किये जा रहे है ,तो अब ये मुम्बई,कम से कस आधी मुम्बई नींद में है। ये दिन रात भागता शहर है...इसका थमना , ठिठकना बहुत बड़ी बात है । शहर के व्यस्ततम इलाके में रहने की वजह से ये शांति कुछ अनोखा सा महसूस करा रही है । न जाने कितनी ही आवाजें रोज के शोरगुल में दब जाती थी, आज साफ सुनायी दे रही है । सड़क पर सन्नाटा है। सड़के भी आज सुकून से सोयी है , उन पर कोई पद...

जनता कर्फ्यू

जनता कर्फ़्यू जनता का,जनता के लिये एक संकल्प संक्रमण के खिलाफ परीक्षा खूद के संयम की  सब साथ आये, सहयोग दे आभार की करतल ध्वनी से  गुंजायमान आकाश करे थाली बजाये शाम पाँच बजे पूरी सामुहिकता से सिर्फ एक दिन नहीं दो हफ्तों तक ध्यान रखे बेवजह बाहर न निकले अंदर रहकर खंगाले खूद को भीतर से 

न जाने क्या क्या देखा

फूल को खिलते देखा परिंदों को उड़ते देखा कुछ ख़्वाबों को मुस्कुराते देखा देखा जमीं को आसमां से मिलते हुए देखा कुछ बच्चों को खिलखिलाते हुए झूर्रियों से झांकते बचपन को देखा धीमे सधे कदमों को देखा दौड़ती भागती जिंदगी में....मैंने ठहरे से कुछ नौजवानों को देखा चाँद को चमकते देखा सूरज को जलते देखा आकाश को कभी नीला कभी लाल तो कभी काला होते देखा चिनार के पत्ते को लाल होते देखा देवदार की ऊँचाइयों को छूकर देखा विशाल पहाड़ों को मैंने बाहें फैलाये देखा पतझड़ को जाते देखा बसंत को आते देखा बूढ़े पेड़ों पर मैंने फिर से यौवन दमकते देखा मैंने देखा लम्हों को छूटते देखा समय को रेत की तरह फिसलते झरनों को गिरते देखा नदी को बहते देखा समंदर को मोंक की तरह देखा कभी उग्र तो कभी शांत देखा मैंने एक गरम फुलका देखा थाली में परोसी धनिये की चटनी को देखा अपने गिलास में मीठे पानी को देखा दाल के पास सजे आम के अचार को देखा महकती खुशबू के साथ भोजन को पकते देखा आँखों में शरबती मिठास को देखा देखा मैंने उन्ही आँखों में नमक को भी बहते हुए हँसने पर फूल कैसे झरते है,मैंने ये भी देखा शोक देखा, श्मशान देखा मृत्यु बाद का मंजर भी देखा अक...