आज हनुमान जयंती है, हनुमानजी से मेरा नाता जन्म से रहा है। जब से होश संभाला,उन्हे आस पास ही पाया,हर दिन चाहे वो खास हो या आम हो, उन्हे पूजा जाता था । हाँ, खास अवसरों पर बड़ा भोग या सवामणी उन्हे अर्पित की जाती थी।
उस वक्त सवामणी हमारे लिये सालासर जाने का अवसर होती थी और सालासर हम बच्चों के लिये पिकनिक जैसा होता था। शायद कोई गिनती नहीं कि हम कितनी बार सालासर गये होंगे और कितनी ही सवामणियों में प्रसाद खाया होगा। हनुमान जयंती एक बड़े उत्सव जैसा होता था, उत्सव के मायने उस वक्त आज जैसे नहीं थे । हाँ, मंदिरों में रतजगा, भोग और श्रृंगार जरुर बड़े स्तर का होता था लेकिन जहाँ तक घर की बात है, मुझे याद है , माँ (दादी) रसोईघर में एक कोयले को गरम करके उस पर घी डालती थी और जब उससे लपटे निकलती तो माँ हम बहन भाईयों को हाथ जुड़वाती और कहती " बाबा आ गये, प्रणाम करो"
हम बच्चा बुद्धि कभी समझ नहीं पाये कि कौनसे बाबा, कहाँ से आ गये लेकिन श्रद्धा से हाथ जोड़ते तो माँ जो पीठ थपथपाती थी उस थपथपाहट की आज मैं मोहताज हूँ। धीरे धीरे थोड़े बड़े होने पर समझ आया कि वो दिन हनुमान जयंती होता है, और माँ ज्योत से हनुमानजी का आवाह्नन करती है। आश्चर्य की बात यह कि ना कोई मूर्ति होती थी और ना तस्वीर , सिर्फ श्रद्धा के सहारे हनुमानजी जिन्हे हम बालाजी कहते थे, उन्हे नमन किया जाता था।
उस दिन हमे चुरमे के लड्डू खाने मिलते थे और बालाजी का चुरमें से कुछ तो नाता है, ये हम बचपन में ही समझने लग गये थे। बचपन में बालाजी की बहुत सी कहानियाँ हम सुनते आये, कोई उनके चमत्कारों की बात करता तो कोई उनके साक्षात दर्शन की , खास बात यह कि ये बाते हमे हौव्वा नहीं लगती थी क्योकि हनुमानजी हमे हमारे परिवार के सदस्य ही लगते थे और वो हमारी रक्षा करते है , ऐसा हम मानते थे और ये विश्वास मेरा आज भी अटूट है।
थोड़े और बड़े होने पर रामानंद सागर की रामायण में हनुमानजी को और अधिक जाना और हम दारासिंह को बिल्कुल हनुमानजी सा सम्मान देने लगे।
मम्मी हनुमानजी की अनन्य भक्त थी, ईष्ट की परिभाषा उस वक्त तक मुझे नहीं आती थी लेकिन रोज घर में हरिओम शरण के भजन ऊँची आवाज में बजते थे। पापा मम्मी को हमेशा से मंगलवार का व्रत करते देखा। मम्मी की आस्था बहुत गहरी थी, उनको अक्सर सुंदरकांड के पाठ करते देखा और अगर पाठ में कुछ विघ्न आ जाये तो फिर से पाठ प्रारम्भ करते देखा। हनुमान जी के बिना हमारा हर काम अधुरा होता था। अगर कुछ गलत हो गया तो उनसे प्रार्थना की जाती कि वो सही कर दे और अगर कुछ अच्छा हो गया तो उन्हे सबसे पहले धन्यवाद देकर प्रसाद चढ़ाया जाता । इस तरह हनुमानजी हर अच्छे बुरे में हमारे साथ रहे । आज उनका जन्मदिन है जिसे अब मैं भी उसी उत्साह से मनाती हूँ । माँ की जगह अब मैं ज्योत लेती हूँ लेकिन माँ की आवाज पीछे से गूंजती है कि बाबा आ गये। अब मैं बच्चों की पीठ थपथपाती हूँ, विडियोकॉल पर बेटे से हाथ जुड़वाती हूँ। सुबह जल्दी उठकर चुरमें के लड्डू का प्रसाद भी चढ़ा दिया ।
मन सुकून में है कि भले पीढ़िया बदल गयी लेकिन हमारे बाबा आज भी आ जाते है हमारी रक्षा करने ।
हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी को 🙏
उस वक्त सवामणी हमारे लिये सालासर जाने का अवसर होती थी और सालासर हम बच्चों के लिये पिकनिक जैसा होता था। शायद कोई गिनती नहीं कि हम कितनी बार सालासर गये होंगे और कितनी ही सवामणियों में प्रसाद खाया होगा। हनुमान जयंती एक बड़े उत्सव जैसा होता था, उत्सव के मायने उस वक्त आज जैसे नहीं थे । हाँ, मंदिरों में रतजगा, भोग और श्रृंगार जरुर बड़े स्तर का होता था लेकिन जहाँ तक घर की बात है, मुझे याद है , माँ (दादी) रसोईघर में एक कोयले को गरम करके उस पर घी डालती थी और जब उससे लपटे निकलती तो माँ हम बहन भाईयों को हाथ जुड़वाती और कहती " बाबा आ गये, प्रणाम करो"
हम बच्चा बुद्धि कभी समझ नहीं पाये कि कौनसे बाबा, कहाँ से आ गये लेकिन श्रद्धा से हाथ जोड़ते तो माँ जो पीठ थपथपाती थी उस थपथपाहट की आज मैं मोहताज हूँ। धीरे धीरे थोड़े बड़े होने पर समझ आया कि वो दिन हनुमान जयंती होता है, और माँ ज्योत से हनुमानजी का आवाह्नन करती है। आश्चर्य की बात यह कि ना कोई मूर्ति होती थी और ना तस्वीर , सिर्फ श्रद्धा के सहारे हनुमानजी जिन्हे हम बालाजी कहते थे, उन्हे नमन किया जाता था।
उस दिन हमे चुरमे के लड्डू खाने मिलते थे और बालाजी का चुरमें से कुछ तो नाता है, ये हम बचपन में ही समझने लग गये थे। बचपन में बालाजी की बहुत सी कहानियाँ हम सुनते आये, कोई उनके चमत्कारों की बात करता तो कोई उनके साक्षात दर्शन की , खास बात यह कि ये बाते हमे हौव्वा नहीं लगती थी क्योकि हनुमानजी हमे हमारे परिवार के सदस्य ही लगते थे और वो हमारी रक्षा करते है , ऐसा हम मानते थे और ये विश्वास मेरा आज भी अटूट है।
थोड़े और बड़े होने पर रामानंद सागर की रामायण में हनुमानजी को और अधिक जाना और हम दारासिंह को बिल्कुल हनुमानजी सा सम्मान देने लगे।
मम्मी हनुमानजी की अनन्य भक्त थी, ईष्ट की परिभाषा उस वक्त तक मुझे नहीं आती थी लेकिन रोज घर में हरिओम शरण के भजन ऊँची आवाज में बजते थे। पापा मम्मी को हमेशा से मंगलवार का व्रत करते देखा। मम्मी की आस्था बहुत गहरी थी, उनको अक्सर सुंदरकांड के पाठ करते देखा और अगर पाठ में कुछ विघ्न आ जाये तो फिर से पाठ प्रारम्भ करते देखा। हनुमान जी के बिना हमारा हर काम अधुरा होता था। अगर कुछ गलत हो गया तो उनसे प्रार्थना की जाती कि वो सही कर दे और अगर कुछ अच्छा हो गया तो उन्हे सबसे पहले धन्यवाद देकर प्रसाद चढ़ाया जाता । इस तरह हनुमानजी हर अच्छे बुरे में हमारे साथ रहे । आज उनका जन्मदिन है जिसे अब मैं भी उसी उत्साह से मनाती हूँ । माँ की जगह अब मैं ज्योत लेती हूँ लेकिन माँ की आवाज पीछे से गूंजती है कि बाबा आ गये। अब मैं बच्चों की पीठ थपथपाती हूँ, विडियोकॉल पर बेटे से हाथ जुड़वाती हूँ। सुबह जल्दी उठकर चुरमें के लड्डू का प्रसाद भी चढ़ा दिया ।
मन सुकून में है कि भले पीढ़िया बदल गयी लेकिन हमारे बाबा आज भी आ जाते है हमारी रक्षा करने ।
हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी को 🙏
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