सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुछ दुख बेहद निजी होते है

आज का दिन बाकी सामान्य दिनों की तरह ही है। रोज की तरह सुबह के काम यंत्रवत हो रहे है। मैं सभी कामों को दौड़ती भागती कर रही हूँ। घर में काम चालू है इसलिये दौड़भाग थोड़ी अधिक है क्योकि मिस्त्री आने के पहले पहले मुझे सब निपटा लेना होता है। सब कुछ सामान्य सा ही दिख रहा है लेकिन मन में कुछ कसक है, कुछ टीस है, कुछ है जो बाहर की ओर निकलने आतुर है लेकिन सामान्य बना रहना बेहतर है।
       आज ही की तारीख थी, सुबह का वक्त था, मैं मम्मी का हाथ थामे थी और वो हाथ छुड़ाकर चली गयी हमेशा के लिये, कभी न लौट आने को। बस तब से यह टीस रह रहकर उठती है, कभी मुझे रिक्त करती है तो कभी लबालब कर देती है। मौके बेमौके पर उसका यूँ असमय जाना खलता है लेकिन नियती के समक्ष सब घुटने टेकते है , मेरी तो बिसात ही क्या ?
मैं ईश्वर की हर मर्जी के पीछे किसी कारण को मानती हूँ, मम्मी के जाने के पीछे भी कुछ तो कारण रहा होगा या सिर्फ ईश्वरीय मर्जी रही होगी। इन सबके पीछे एक बात समझ आयी कि न तो किसी के साथ जाया जाता है और ना ही किसी के जाने से दुनिया रुकती है जैसे मेरी आज की सुबह सुचारु रुप से चल रही है , मन भीतर जो है उसकी परछाई भी बाहर नहीं है। लेकिन आपके पास रहते है जाते हुए व्यक्ति की शिक्षाएं, संस्कार और परवरिश , जिन्हे हम जीन्स कह देते है ,उनकी बातें आपके आपके व्यवहार में झलकती है। उनकी चेहरे की बनावट, आँखों का रंग, नाक की लंबाई सब कुछ आपकी शक्ल में रिफ्लेक्ट होने लगता है इसलिये भले किसी के जाने से दुनिया न रुकती हो लेकिन आपके विचार,आपकी परिपक्वता और आपका चेहरा ,आपके अपनों को साथ लिये चलता है और उनकी उपस्थिती सबको महसूस होती है और यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होती है कि उनके व्यक्तित्व की अच्छी बातों का समावेश आपके बर्ताव में हो।
कुछ सुख और कुछ दुख बेहद निजी होते है, जिनका वर्णन नहीं किया जाता।
       समय: आज सुबह
         मम्मी को याद करते हुए ❤️
      










टिप्पणियाँ

माँ की जगह रिक्त हो ही जाती है कोई नहीं भर सकता है |
yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 13 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
आलोक सिन्हा ने कहा…
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
आत्ममुग्धा ने कहा…
जी , बिल्कुल सच बात
आत्ममुग्धा ने कहा…
आपका बहुत सारा धन्यवाद

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए