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पलाश

इस बार जब अपने खेत वाले घर में जाना हुआ तो दूर से ही घर के पिछवाड़े एक लाल पेड़ मुझे दिखा और बरबस ही मुझे चिनार याद आ गये ।
         मैं नजदीक गयी तो पता लगा कि बसंत आने वाला है....ये पलाश के फूल थे जो पेड़ की शाखाओं पर झूंड में थे । जब मैंने छत पर जाकर देखा तो कई जगह ये पलाश के पेड़ दिखे । पहाड़ों में,जंगलों के बीच ये पेड़ इतने खूबसूरत लग रहे थे कि कल्पना भी नहीं की जा सकती । 
      मैंने पलाश के पेड़ों को नजदीक से जाकर देखा, बड़े बड़े तीन पत्तों की जोड़ी वाला ये पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा रहा था और जो पत्तियाँ पेड़ों पर थी वो भी सूखी सी, धूल मिट्टी से सनी । यहाँ पर सभी पेड़ ऐसे ही थे ....सब पर धूल जमी हुई थी । मेरे मन ने कहा कि एक बारीश होगी और ये सब नहाये धोये हो जायेंगे। प्रकृति सबका ख्याल रखती है अपने तरीके से । 
      हाँ , तो हम वापस आते है पलाश पर.....इन धूल जमी आधी बची सी पत्तियों के बीच ये अलौकिक पुष्प इस तरह खिल रहे दे जैसे कोई दैवीय वृक्ष हो । पत्तों पर जितनी धूल थी वही इसकी मखमली पत्तियों पर कही कोई धूल नहीं बल्कि एकदम ताजगी भरा अहसास । एक ही वृक्ष पर दो विरोधाभास । मेरी उत्सुकता बढ़ गयी और पलाश के बारे में जितनी जानकारी निकाल सकती थी, मैने निकाली । मुझे पता लगा कि यही इसके खिलने का समय है और बसंत के आगमन की सूचना है । ढाक के तीन पात वाला मुहावरा इसी पेड़ से निकला है । इसकी पत्तियां तीन के समूह में ही निकलती है । किसी भी टहनी पर न तो दो पत्तियां होती है और ना ही चार । 
     इसके अलावा सबसे दिलचस्प बात मुझे ये लगी कि पलाश जिसे टेसू या केसू के नाम से जाना जाता है , इसके रंग बनाये जाते है जिससे होली खेली जाती है । बस....मैंने तुरंत फूल बीनने शुरु कर दिये और सोच लिया कि घर जाकर रंग बनाऊँगी और उससे पेंटिंग 😎
 स्थानीय लोगों से रंग बनाने की विधि पूछी जो कि बहुत ही सरल थी । 
       इस पेड़, इस फूल से मैंने बहुत सी चीजे सीखी । उन सब सीखों से एक कविता बन गयी जिसे अगली पोस्ट में शेयर करूँगी ।
     रंग बनाने का प्रोसेस भी शेयर करूँगी....तब तक खूद का खयाल रखते रहिये । 

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