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सखा

भारतीय पुराणों की अद्भुत घटनाओं में से एक है कृष्ण सुदामा मिलन । यूँ तो कृष्ण की लीलाओं का कोई छोर नहीं पर ये विलक्षण लीला तो विभोर कर देती है।
         सुदामा, जो कि कृष्ण के बाल सखा है और दीनहीन गरीब ब्राह्मण है । दोनों सखाओं का बचपन छूटा और साथ भी छूटा। कृष्ण द्वारका आ गये और वही के होकर रह गये। अपनी दरिद्रता से दुखी सुदामा अपने सखा कृष्ण जोकि अब राजा है, से मिलने द्वारका आते है ।
कृष्ण को जब सुदामा के आने का संदेश मिलता है तो कृष्ण नंगे पावं दौड़े आते है और अपने बालसखा को देखकर विभोर हो उठते है। वे सुदामा को अपने साथ महल में लेकर आते है ,अपने सिंहासन पर उन्हे बैठाते है और उनके लहुलुहान पावों को अपने हाथों से धोते है। 
      महल में सब लोग सन्न है, रुक्मिणी अचंभित है, स्वयं सुदामा स्तब्ध है । 36 करोड़ देवी देवता मंत्रमुग्ध है इस कृष्णलीला पर। कैसी होगी वह घड़ी जब एक दरिद्र  ब्राह्मण सिहांसन पर विराजमान है और स्वयं द्वारकाधीश उनके चरणों में बैठकर उनके चरण पखार रहे है । जिसने भी यह दृश्य देखा, ठगा सा रह गया और अश्रु झड़ी से सराबोर हो गया। द्वारकाधीश की प्रेमपगी आँखे अनवरत बह रही है , वे एक साधारण से मित्र बनकर असाधारण मित्रता के पैमाने बना रहे है....वही सुदामा बेचारे समझ नहीं पा रहे और आश्चर्य से द्वारकाधीश को अपने चरणों में बैठा देखकर संकोच में भी आ रहे है। एक दीन है और एक दीनानाथ लेकिन प्रस्तुत चित्र में दो मित्रों का मिलन है.....ऐसा मिलन, जो न कभी हुआ और न होगा । युगयुगों तक इस मित्रता की कहानियां कही जायेगी । 

      कृष्ण की इन्ही लीलाओं पर तो हम सब न्यौछावर होते है। कृष्णजन्मोत्सव की हार्दिक बधाइयां । 

हाथी घोड़ा पालकी 
जय कन्हैयालाल की 🙏
 

टिप्पणियाँ

Ravindra Singh Yadav ने कहा…
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 19 अगस्त 2022 को 'अपनी शीतल छाँव में, बंशी रहा तलाश' (चर्चा अंक 4526) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
अनीता सैनी ने कहा…
बहुत सुंदर लिखा मित्रता का यह पहलू।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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