मैं बहुत कुछ जान सकती हूँ
मैं बहुत कुछ कह सकती हूँ
किताबें और गुगल
दोनो मुझे सब बताते है
इस दुनिया की बातें
और
तीसरी दुनिया की भी अनकही अनजानी सी बाते
मैं धीमे से मुस्कुराती हूँ
उस मुस्कुराहट से
मेरे चेहरे पर दरारें पड़ जाती है
क्योकि मेरा ऊपरी चेहरा
इन दिनों सख्त है
अभ्यस्त है सलीके से रहने का
खुद को निष्ठुर दिखाने का
अब मेरी मुस्कुराहट
हौले से हटा रही है मुखौटे को
और एक निश्वास भरकर
मैं सोच रही हूँ
मैं बहुत कुछ जान सकती हूँ
बहुत कुछ कह सकती हूँ
पर वास्तव में
मुझे उतना ही जानना है
जो मेरे लिये जानना जरुरी है
#आत्ममुग्धा
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