वो स्याह अंधेरा था
फिर उसमे हल्की सी एक रेखा बनी
ज्यादा चमकीली नहीं
बस, धुंधली सी
स्याह रात
जो अब बैंगनी होने लगी
उस बैंगनी में छुपा था चटख सिंदूरी
जो हल्के नीले के ऊपर बिछा था
वो बैंगनी,सिंदूरी को चुमता हुआ अलविदा कह गया
रह गया पीछे से थोड़ा सा गुलाबी
गहरी लाल नारंगी धारीयों के साथ इठलाता हुआ
स्याह रात बैंगनी के साथ गुलाबी भी ले गयी
अब रह गया सिंदूरी
सिंदूरी आसमान .......अलौकिक, अद्भुत
सुरज की अगवाई में सजा सा
लंबी धारीयों के रुप में तोरण सा सजा हुआ
नन्हे पक्षीयों के कलरव के साथ
नीला रंग सिंदूरी के साथ ताल मिलाने लगा
दोनो रंग , एक दूजे में रंगे दूर तक फैल गये
सामने वाले पहाड़ की चोटी के थोड़ी बांयी ओर से
सूरज ने ताका झांकी की
जब आश्वस्त हुआ अपनी सज्जा, अगुवाई देखकर
तो आहिस्ता से पूरा ऊपर आया
आसमान जैसे नहाया सिंदूरी से
पक्षी खुशी मनाने लगे
पेड़ों के पत्ते गहरे हो गये
पहाड़ मुसकाने लगे
पता है....
प्रकृति हर रोज
ऐसा ही जश्न मनाती है
हमे लगता है कि
सूरज तो हर रोज उगता है
लेकिन हम नहीं जानते
हर सुबह कितनी मिन्नतों के बाद
उम्मीदें लिये आती है
तुम कभी किसी पहाड़ के पीछे से सूरज को
निकलते देखना
आसमां को रंग बदलते देखना
और देखना
जीवन का जश्न
हर सुबह का जश्न
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धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क