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हमारा दिन

कल पुरुष दिवस था....बिल्कुल चुपचाप शांती से गुजर गया। न कोई हंगामा , न कोई बिग डील, न पार्टी शार्टी, न दनदनाती पोस्ट और न ही डिस्काउंट की बौछारें । 
        कभी गौर करके देखियेगा अपने आस पास के पुरुषों को ,वे आज भी व्यस्त ही होंगे और कल भी व्यस्त ही थे , खुशी से उठायी हुई जिम्मेदारियों को पूरी करने में। उन्हे तो पता भी नहीं रहता कि महिलाओं की तरह उनका भी दिन मनाया जाता है । भुले भटके अगर कोई उन्हे विश कर भी दे तो शायद भीतर ही भीतर लजा जायेगे वो भी एक स्त्री की तरह। 
          हर पुरुष में एक स्त्री अंश होता है और हर स्त्री में एक पुरुष अंश.....और ये दोनो एक दूसरे के साथ ही संपूर्ण होते है । दोनो ही ईश्वर की बेहतरीन कृति है । न कोई कम है न कोई ज्यादा... दोनो एक दूसरे के पूरक है। हमे बिल्कुल ऐसी ही व्यवस्था की जरुरत है....जहाँ सद्भाव हो समभाव हो, एक दूसरे के प्रति सम्मान हो। एक दूसरे से ऊपर जाने की जद्दोजहद में हम पूरी व्यवस्था ही बिगाड़ देंगे । 
    महिला दिवस पर अपने ही मेल साथियों से उपहार प्राप्त करने वाली हम महिलाएं हर दिन को महिला दिवस मनाये जाने पर जोर देती है लेकिन तनिक ठहरिये और सोचिये इस पुरुष दिवस के बारे में भी ....कितने पुरुषों ने कहा कि सिर्फ एक दिन नहीं हर दिन पुरुष दिन हो । यहाँ मैं किसी की हिमायती नहीं बन रही लेकिन सोच कर देखिये कि कितना अच्छा हो ग़र हर दिन 'हमारा' हो। हम अकेले, चाहे स्त्री हो या पुरुष कभी पूर्ण नहीं हो सकते....हमे एक दूसरे की जरुरत होती है चाहे किसी भी रुप में हो और यह सच है। साथ से यहां मेरा मतलब प्रेमी प्रेमिका रुप ही नहीं है ये किसी भी तरह का हो सकता....पिता, पति,पुत्र, दोस्त या चंद मिनटों के लिये मिले अजनबी भी।
     मैं पूरी तरह से समानता की पक्षधर हूँ चाहे पुरुष हो या स्त्री  क्योकि जिस सत्ता का आधिपत्य होगा , वर्चस्व उसी का होगा फिर वो मातृसत्तात्मक हो या पितृसत्तात्मक । बेहतर है अधिकारों में संतुलन हो।
      मेरे जीवन में आये सभी पुरुष व्यक्तित्वों पर मुझे गर्व है , सम्मान है दिल में उन सभी के लिये और अपार स्नेह भी। आपका होना ही मेरा वजूद है । 

टिप्पणियाँ

  1. एक बहुत सुंदर और जरूरी मुद्दा उठाया है तुमने... स्त्री पुरुष दोनों पूरक हैं एक दूसरे के फिर ये प्रतिस्पर्धा क्यों?? दोनों को ही ये समझने और विचार करने की जरूरत है 😊🙏🏻

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