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विकल्प

विकल्प हमेशा ऐसा ही होता है
जब चाहो 
साथ रखो
जब चाहो 
नजरअंदाज करो
प्रश्नपत्र में जब देखती थी ऐसा
तो उस प्रश्न का औचित्य
कभी समझ नहीं पायी
जो सरल होता था
उसका चयन कर लिया जाता था
और दूसरे को 
कठिन समझकर नजरअंदाज
अब भी
जब अपने आइपेड की
डिजिटल की पैलेट में 
रंगों के
सैकड़ों विकल्प देखती हूँ
मैं उलझ जाती हूँ उनमे
और अधिक....
और बेहतर....
और खूबसूरत....
जबकि कागज पर 
अपनी रंगों की छोटी सी पैलेट में भी
सिर्फ तीन या चार रंगों के समायोजन से
मै दुनिया रंग देती हूँ
फिर अक्सर सोचती हूँ
विकल्प ही ना हो तो ? 
वो कहावत है न
कम सामान सफ़र आसान
बिल्कुल ऐसा ही है
ज्यादा विकल्प ज्यादा उलझन 
बस.....
अब मैं विकल्पों को नहीं तलाशती
क्योकि....
जो प्राप्त है वही पर्याप्त है 

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09
नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Kamini Sinha ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Kamini Sinha ने कहा…
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
ज़्यादा विकल्प ज़्यादा उलझन..सटीक उक्ति..!
आलोक सिन्हा ने कहा…
अच्छी रचना है |
Satish Rohatgi ने कहा…
बहुत सुंदर रचना
आत्ममुग्धा ने कहा…
शुक्रिया प्यारी सखी

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