भय एक हल्की सी रेखा है
इस पार ओर उस पार के बीच की
भय छुपा बैठा है
खुशी के उस पारावार में
जो सुचक है आने वाले तुफ़ान का
भय एक पदचाप है धीमी सी
जो....सुकून चुराकर
आहिस्ते से अपनी जड़े फैलाता है
बिल्कुल ऐसे
जैसे आत्मीयता की भट्टी पर
धीमी आँच में पकता प्रेम है
ये भय प्रेम पर भी भारी है
भय, स्क्रीन पर पॉपअप हुआ एक मैसेज है
भय, डिलीट किये नम्बर से
अचानक आया
इनकमिंग कॉल है
भय, आधीरात की फोनरिंग है
भय, हर वक्त पीछा करती नजरों सा है
भय, सूख चुकी आँखों की
लाल धारीयों के जालों में फंसा सा है
भय विश्वास को तार तार कर तोड़ता सा है
भय हर चीज से बड़ा होता सा है
भय....भय....भय
क्या इस भय के पार जीत है ?
सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
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