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भय

भय एक हल्की सी रेखा है 
इस पार ओर उस पार के बीच की
भय छुपा बैठा है
खुशी के उस पारावार में
जो सुचक है आने वाले तुफ़ान का
भय एक पदचाप है धीमी सी
जो....सुकून चुराकर
आहिस्ते से अपनी जड़े फैलाता है
बिल्कुल ऐसे
जैसे आत्मीयता की भट्टी पर
धीमी आँच में पकता प्रेम है
ये भय प्रेम पर भी भारी है
भय, स्क्रीन पर पॉपअप हुआ एक मैसेज है
भय, डिलीट किये नम्बर से
अचानक आया
इनकमिंग कॉल है
भय, आधीरात की फोनरिंग है
भय, हर वक्त पीछा करती नजरों सा है
भय, सूख चुकी आँखों की
लाल धारीयों के जालों में फंसा सा है
भय विश्वास को तार तार कर तोड़ता सा है
भय हर चीज से बड़ा होता सा है
भय....भय....भय
क्या इस भय के पार जीत है ?

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उम्मीद

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मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

कुछ दुख बेहद निजी होते है

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