सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मित्रता दिवस

आज मित्रता दिवस है, दोस्ती का दिन! 
        क्या आपने कभी शिद्दत से दोस्ती को महसूस किया है, अक्सर लोग प्यार को तो शिद्दत से महसूस कर लेते है पर दोस्ती को नहीं कर पाते क्योकि सामान्यतया दोस्ती से मायने मात्र मौज मस्ती के लगाये जाते है। जिंदगी सब बातों का समावेश है और जब हर उस समावेश में आपकी दोस्ती घूली होती है तो शायद वो जिंदगी बेहतरीन। आपने कृष्ण सुदामा, राम सुग्रीव की दोस्ती के बारे में भी सुना होगा, ये मित्र प्रेम के  शानदार उदाहरण है। यहाँ मित्र के साथ प्रेम शब्द भी आ गया है जो हर कोई महसूस नहीं कर सकता। जब मित्रता उच्चतम पायदान पर पहुँच जाती है तो वह प्रेम बन जाती है अब आपका मित्र आपका भाई बनकर आपको समझा सकता है, आपकी माँ बनकर आपको डाँट सकता है, आपका गुरु बनकर आपकी गलतियां आपको गिना सकता है.....और प्रेम के इन भावों को ह्रदय से निकाला नहीं जा सकता, वे स्थायी होते है और इनमे रत्तीभर भी फर्क लाना या सोचना मात्र भी कई बेहतरीन रिश्तों को खो देने के बराबर है।  जरुरी नहीं कि आप दोस्ती में रोज बातें करे या मिले, हाँ... लेकिन यह अहसास बना रहना जरुरी होता है कि बात नहीं करते हुए भी मित्र सदैव हमारे साथ है। हम जब चाहे तब उससे बात कर सकते है, हमारे आँसूओं को अकेलेपन की जरुरत नहीं होती, हमारे मित्र का कांधा हमेशा साथ होता है..... हमारी हँसी उसके साथ मिलकर ठहाका बन जाती है....उसके दुःख के हम भागीरथी बन जाते है.... उसके लिये सदैव सबसे अच्छा तलाशते है.....हम भले ही पूर्ण न हो पर उसमे अपना बैस्ट वर्जन देखना चाहते है जैसे कोई माँ अपने बच्चे को देखती है।
              ऐसी दोस्ती एक अपवाद सा ही होती है जहाँ दोस्त को देखकर प्रेम में आँसू झरने लगते है और हम खुद नहीं समझ पाते कि ये हो क्यो रहा है ? यह निस्वार्थ होती है इसलिए अमर होती है और हाँ ऐसा सिर्फ एक ही दोस्त हो सकता है, अगर आपके पास एक से अधिक है तो आप गलतफहमी में है..... ये चड्डीबड्डडी दोस्ती हो सकती है, मित्रप्रेम नहीं। अगर आपने इन भावों को महसूस कर लिया है, दोस्ती के पौधे को भावों से सींचा है तो यकीन मानिये ये पौधा पल्लवित होगा और बरगद का विशाल वृक्ष बनेगा जो आपके जीवन को हमेशा एक आधार देगा......तो निकलिये दुनियां की भीड़ में और अपने लिये तलाशिये एक ऐसा ही मित्र लेकिन आगाह करती हूँ कि ऐसी दोस्ती सिर्फ समर्पण पर ही टिकती है वही इसका खाद पानी और पोषण है और एक बार प्रतिष्ठित हो जाने के बाद वह समर्पण कही नहीं जा सकता.... हाँ, ऐसा हो सकता है कि मित्र किसी अनहोनी या अतिविशेष कारणों की वजह से चला जाये, लेकिन उस परिस्थिति में हम यही कहेंगे कि मित्र स्थायी नहीं होता पर उसकी मित्रता सदा स्थायी होती है जो हर समय हमे छाया देती रहेगी, हमे सहलाती रहेगी मंद बयार सी।

टिप्पणियाँ

दोस्तों के बिना जीवन अधुरा है ...
दोस्त ही हैं जो जीवन में सम्भाल्लेते हैं हर पल ... सुन्दर आलेख ....
दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!
आत्ममुग्धा ने कहा…
सच्चा दोस्त पाना भी मुश्किल
आत्ममुग्धा ने कहा…
जी...विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

कुछ दुख बेहद निजी होते है

आज का दिन बाकी सामान्य दिनों की तरह ही है। रोज की तरह सुबह के काम यंत्रवत हो रहे है। मैं सभी कामों को दौड़ती भागती कर रही हूँ। घर में काम चालू है इसलिये दौड़भाग थोड़ी अधिक है क्योकि मिस्त्री आने के पहले पहले मुझे सब निपटा लेना होता है। सब कुछ सामान्य सा ही दिख रहा है लेकिन मन में कुछ कसक है, कुछ टीस है, कुछ है जो बाहर की ओर निकलने आतुर है लेकिन सामान्य बना रहना बेहतर है।        आज ही की तारीख थी, सुबह का वक्त था, मैं मम्मी का हाथ थामे थी और वो हाथ छुड़ाकर चली गयी हमेशा के लिये, कभी न लौट आने को। बस तब से यह टीस रह रहकर उठती है, कभी मुझे रिक्त करती है तो कभी लबालब कर देती है। मौके बेमौके पर उसका यूँ असमय जाना खलता है लेकिन नियती के समक्ष सब घुटने टेकते है , मेरी तो बिसात ही क्या ? मैं ईश्वर की हर मर्जी के पीछे किसी कारण को मानती हूँ, मम्मी के जाने के पीछे भी कुछ तो कारण रहा होगा या सिर्फ ईश्वरीय मर्जी रही होगी। इन सबके पीछे एक बात समझ आयी कि न तो किसी के साथ जाया जाता है और ना ही किसी के जाने से दुनिया रुकती है जैसे मेरी आज की सुबह सुचारु रुप से चल रही है ...